जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !
जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!
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Monday, 18 March 2013
आचरण व आवरण
जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! शुभ प्रात: !
जब जब आचरण की बात आती है तो पैर रुक जाते हैं
और इसी तरह आवरण / अज्ञान के सामने आते ही प्राय: नयन झुक जाया करते हैं ! कहने का
अर्थ है कि जहाँ भटकन की बात होती है ,वहाँ मनुष्य का आकर्षण है और जहाँ त्याग
आचरण सम्बन्धी बात होगी वहाँ एक कदम भी आगे व्यक्ति नहीं बढ़ पाता है ! ये देही
(संसारी प्राणी) मतिमंद कभी कभी रस्सी को सर्प समझकर विषयों से हीन हो जाता है और
कभी सर्प को रस्सी समझकर विषयों मे लीन हो जाता है ,यानि दुविधा मे पड़ जाता है !
कहीं सत्य को असत्य और कहीं असत्य को सत्य समझ बैठता है ,यह सब मोह की ही महिमा है
! इस मोह की समाप्ति जब तक नहीं हो सकती ,जब तक कि स्वभाव कि जानकारी न हो जाय
,यानि जो स्वभाव से अनभिज्ञ रहेगा वह मोह को समाप्त नहीं कर सकता !
आर्यिका
माँ श्री प्रशान्तमति जी “माटी की मुस्कान”
मे ! आचार्य श्री विद्यासागर जी की “मूक माटी”
पर आधारित !
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