जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! नमस्कार
जो सदा ध्रुव है ,सत् है
,अविनाशी है ,ज्ञान रूप है ,उसे ही जानो मानो ,उसी मे लीन हो जाओ ! अनन्त काल हो
गया व्यर्थ कि भाग दौड मे ,अब विराम लो ! स्व स्वभाव मे लौटो ,जो आनन्द धन है ,वह
अपूर्व है और अजन्मा है ! दूसरों के लिए आकुलता करके अपना स्वास्थय व चैन अब खराब
मत करो ! जीवन अमूल्य है ,आयु प्रति समय बीत रही है ,शीघ्र आत्म कल्याण करो !
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