मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Thursday, 14 March 2013

अवनि


जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! शुभ प्रात: !
अवनि
सदा सहा है सदा सहेगी
और सहती ही रहेगी
न कहा न कहेगी
पर शायद अब .........
जीत इसे कोई बनता त्रिखंडाधिपति .....
कोई षट खंडाधिपति
मात्र उनका यह भ्रम रहा
क्योंकि धरती का स्वभाव
एक अखंड रहा
सागर को अपने उर (आँचल) मे थान दिया
रत्नों की राशि से उसे पूर दिया
जलधि की उदल पुथल को
समता से लेती
कभी न उससे कुछ भी कहती
शायद इसी से वह गर्वित हो रहा
अपनी मर्यादा को खो रहा
वारिधि को यह ज्ञात न रहा
कि उसे नियंत्रित करने
वसुंधरा ने बडवानल रचा
वीरों ने वीरता से
धीरों ने धीरता से
इसको ग्रहण किया
न ही यह पार्थिव रही
तभी तो पृथ्वी बनी
मनु के मानव को मानवता का
बेजुबानों को हरियाली का
और न जाने किस –किस को
क्या - क्या उपहार दिया
सही चलोगे तो मिलता रहेगा
नहीं चलोगे तो प्रलय दिखेगा
खूब फलो फूलो बढते रहो
यही दुआ देती रहती
मानव विकास के हर क्षण की
साक्षी रहती
और हमेशा अनिमेष निहारती
प्रशान्त भावों से भरी
मूक माटी
आर्यिका माँ श्री प्रशान्तमति जी माटी की मुस्कानमे ! आचार्य श्री विद्यासागर जी की मूक माटीपर आधारित !


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