जय जिनेन्द्र बंधुओं ! प्रणाम ! शुभ प्रात: !
जब मन की टीस पहुँचती
है तो आतंकवाद का अवतार होता है ! संतों ने सही कहा भी है –अति पोषण , अत्यधिक
प्रेम ,वात्सल्य और अति शोषण यानि ज्यादा से ज्यादा शोषण की स्थिति पैदा करना
दोनों ही खतरनाक होते हैं ! अति कहीं भी नही होनी चाहिये ! अति का यही परिणाम है
,जिससे जीवन का लक्ष्य शोध नहीं बन पाया ,बदले का भाव प्रतिशोध बन गया , जो महा
अज्ञान है ! दूरदर्शिता का अभाव दूसरों के साथ –साथ अपने लिए भी घातक होता है !
मंगलमय जीवन बने ,छा
जाए सुख छाँव ,
जुड़े परस्पर दिल सभी
,टले अमंगल भाव ,
यही जिन्दगी मुसीबत ,
यही जिन्दगी मुसर्रत (आनन्द),
यही जिन्दगी हकीकत ,
यही जिन्दगी फ़साना ,
जैसा भी जीवन चल रहा
है ,उसमे आनन्द लो .......
This very life is a
distress
This very life is a joy
(pleasure)
This very life is a
reality
This very life is a
fiction.
Enjoy the life as it
goes……
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