"जिस व्यक्ति को धर्म का ज्ञान नही है ,जिसे अपनी आत्मा की झलक कभी स्वपन में भी नही ,वह हमेशा लड़ने को उद्दयत मिलेगा ,सदैव क्रोध से भरा रहेगा .क्योंकि उसके लिये जीवन का आनंद क्रोध करने में ही है!"
"किसके लिये ? मात्र भौतिक एवं क्षणिक सुख के आभास के लिये ,इतना अन्याय और अत्याचार ,अपनी जरा भी चिंता नही की ! इतने अमूल्य जीवन को यों ही समाप्त कर दिया ,स्वयं के परमात्मा का विनाश कर दिया ! उस जीवन दीपक को विनष्ट करने पर तुले हो ,जिससे अनन्त दीपक रोशन हो सकते हैं ! शायद तुम्हे पता नही ,तुम उस अमूल्य अवसर को विनष्ट कर रहे हो ,जिससे परम सत्ता की प्राप्ति सम्भव है !"
आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज "आध्यात्म के सुमन " में
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
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