आज का विचार 24.12.2011
अज्ञानी की जितनी विशुद्धि उपवास में होती है .
ज्ञानी की उतनी विशुद्धि भोजन करते हुए होती है !
आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
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