"वासना की धुप ,तृष्णा की अग्नि से क्लान्त तथा अज्ञान की यात्रा से थके राही को जहां छाया और विश्रान्ति मिलती है वही धर्म है !"
"जीवन की संपदा को ,अंतरंग की सत्ता को प्राप्त करने के लिये धर्म किया जाता है ! जीवन नैया को धर्म की पतवार से खेकर ही किनारे पहुंचाया जा सकता है ! त्याग है जीवन को चलाने के लिये तथा धर्म है जीवन की सच्चाई पाने के लिए ! त्याग से शक्ति का संचय होता है ,मन वश में होता है तथा धर्म से हेय उपादेय का विवेक जागृत होता है ! त्याग शरीर की रक्षा के लिए है व धर्म आत्मा की !"
धर्म उत्कृष्ट मंगल है ,अहिंसा संयम और तप उसके लक्षण हैं ! जिसका मन सदा धर्म में लगा समाया रहता है ,उसे देवता भी नमस्कार करते हैं !
आचार्य श्री 108 श्री पुष्पदंत सागर जी “आध्यात्म के सुमन” में
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
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