"परिग्रह का विमोचन कर दो ,मन शांत हो जाएगा !मन तो चाहता है विराट को ,परम पावन को और हम लगाते हैं उसे शूद्र बातों में ,एक बार अन्तरंग भावों से परिग्रह का त्याग कर दो ,फिर देखो तुम्हारा मन कैसे नही रुकता ,कैसे शांत नही होता "
" नर में नारायण छुपा है, खोजना आपका काम है! कोई नारायण आकर आपके नारायण को नही निकालेगा, हर आत्मा में नारायण छुपा है भगवान महावीर ने उस नारायण को अपनी सतत साधना से पाया है ! आप भी स्वयं की सतत साधना से उसे पा सकते हैं ! नारायण को जाग्रत करने का पूर्ण
अधिकार आपके हाथों में सौंप दिया है "
जानता हूँ बाग में दो दिन रहेंगे फूल ,
जब तक उन्हें हवा मिलती रहेंगी अनुकूल
सोने तक ही आँखों में रहेंगे सपने ,
जागने पर सामने पड़ी मिलेगी धुल !
आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज "आध्यात्म के सुमन " में
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
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