मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Monday 9 April 2012

कर्म का लेख मिटे न रे भाई

         एक बार एक राजा सफर को निकले और घुमते हुए जंगलमे भटक गए ! बहुत चक्कर लगाते हुए व भटकते हुए काफी समय बाद वह वापस राजमहल पहुंचे ! स्नानादि करने के बाद भोजन प्रारम्भ ही करने वाले थे कि एक बन्दर कहीं से दैवगत्या संयोग से अचानक आया और सारा भोजन खराब कर गया ! तब उस समय के लिए राजा साहेब फिर भूखे रह गए ! वे सोचने लगे कि आखिर आज सवेरेसे ऐसा क्यों हो रहा है , किस का मुहं देख लिया ! कुछ समय बाद सोचने पर उन्हें याद आया कि अमुक कंजूस का मुहं देख लिया था ,सुबह महल से निकलते हुए ! उसे बुलाया गया और जल्लाद के लिए आदेश हुआ -इसे शूली की सजा दी जाए ! 
              कंजूस था ,तो चतुर तो था ही ! बोला - राजन मुझ से ऐसी कौन सी भूल हो गयी जो कि मुझे शूली की सजा दी जा रही है ! राजा ने कहा - आज सुबह होते ही तेरा मुहं देखा था जिससे मुझे अभी तक भोजन भी नसीब नही हुआ है ! यदि तुम्हे जीवित रखा गया तो औरों को भी तुम परेशान करते रहोगे ! 
                 कंजूस ने साहस  बटोरकर कहा -राजन जी ,मैंने भी आज सुबह सवेरे पहले पहल आपका ही मुहँ देखा था  जिससे कि मुझे मृत्यु दण्ड मिल रहा  है! अब आप ही बताइये कि आपको  कौन सा दण्ड भोगना पड़ेगा ! यह सुनकर राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ व उसे तुरंत प्राण दण्ड से मुक्त कर दिया गया !
शिक्षा  ये है कि जो कुछ भी हो रहा है वह सब जीव के पूर्व मे किये हुए कर्मों के अधीन है !

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