मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Friday 27 April 2012

भागो नही जागो

संत कहते हैं सँसार का मार्ग बड़ा खतरनाक है ! इस मार्ग पर तुम्हे कदम कदम पर संभल कर चलना पड़ता है ! थोड़ी सी भी चूक हुई तो गए काम से !जैसे कोई हिमालय पर चढ़ना चाहता हो तो उसे एक एक कदम संभाल कर चढ़ना पड़ता है ! सजगता और सावधानी से ,क्योंकि एक कदम भी संतुलन गडबडाया तो उसे नीचे आने से कोई नही रोक सकता है !
धर्मात्मा जीव भी अपने जीवन को उत्कर्ष तक ले जाना चाहता है ! उसका ध्येय ऊँचाई तक जाना है ,शिखर को छूना है ,तो उसके लिए सावधानी भी निहायत जरूरी है ! और इसी सावधानी का नाम है संवेग ! शास्त्रों मे लिखा है "सँसार से भय का नाम संवेग है " कुछ लोग कहेंगे की महाराज ! ये कहा जाता है कि भय तो मनुष्य की एक बड़ी दुर्बलता है और इस भय को दूर करना चाहिये और अभय का उपदेश दिया जाता है ? पर यहाँ तो भय का उपदेश दिया जा रहा है और वह भी एक सम्यक दृष्टि की विशेषता के रूप मे ! हाँ ,बंधुओं ! सम्यक दृष्टि और अज्ञानी मे यही अन्तर है ! सम्यक दृष्टि सँसार  से भय करता है और मिथ्यादृष्टि अज्ञानी सांसारिक लोगों से ! संसारी परिस्थितयों से भागना अज्ञानी का काम है और सांसारिक परिस्थितियों से भय रखकर जागरूक रहना यह ज्ञानी का लक्षण है ! बहुतेरे लोग ऐसे हैं जिनके जीवन मे कोई ना कोई भय व्याप्त रहता ही है ! कभी कभी वह इन परिस्थितियों से पीठ दिखाकर भागना भी शुरू कर देते हैं ,संत कहते हैं भागो नही जागो ! भाग कर के जाओगे कहाँ ?
 रास्ते पर चल रहे हैं और आगे बहुत गहरी खाई है पर सडक के किनारे यदि संकेत सूचक चिन्ह है जो ये बता रहे हैं आगे कुछ दूरी पर गहरी खाई है तो इसका मतलब यह नही कि इस खाई को देखकर तुम गाडी मोड दो ! उस मार्ग सूचक संकेत का आशय सिर्फ इतना है कि आगे तुम अपने ब्रेक को संभाल लो ! जिस गति से तुम अभी चल आरहे हो उस गति से न चलाकर कुछ धीमी गति से, सावधानी से चलो ! 
संत भी यही कहते हैं ,जीवन मे ढलान है तो अपने ब्रेक संभाल लो ,ताकि तुम गर्त मे गिरने से बच जाओ ! सावधानी से अपना जीवन जियो ! बस यही है संवेग ! हमारे सद्गुरु जो संकेत देते हैं ,हमारे शास्त्र जो मार्ग दर्शन देते हैं उनकी उपेक्षा करके जो इस सँसार के मार्ग पर आगे बढते हैं उनका जीवन हमेशा के लिए विनष्ट हो जाता है ! भव भावान्त्रों से हमारे साथ यही होता आया है ! हमने अपने सँसार कि यात्रा को आँख मूंदकर आगे बढ़ाया है और नतीजे मे हमेशा ही हमें नर्क और निगोद का पात्र बनना पड़ा है ! इसीलिए संत कहते हैं सँसार से भागो नही सँसार मे  जागो !

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