मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Monday, 30 April 2012

फल की नही ,अमरफल की भावना करो ,चाहना करो


एक संत रंगनाथ जी हुए हैं जब वह बच्चे थे तो उनके पिता ने उनको बाजार से फल लाने के लिए कहा ! वो फल लेने बाजार मे गए तब रास्ते मे उन्होंने एक पीड़ित परिवार को देखा ! वह परिवार तीन दिन से भूखा था ! उन्होंने सारे विकल्प छोड़कर उस परिवार को भोजन लाकर दे दिया ! तीन दिन के बाद भोजन मिलने पर उन्हें हार्दिक प्रसन्नता कि अनुभूति हुई ! इधर रंगनाथ जी  खाली हाथ घर पहुंचे ! जब वह घर पहुंचे तो पिता ने कहा क्यों बेटा तुम फल नही लेकर आए ? तो रंगनाथ जी ने कहा कि पिताजी मै फल नही अमरफल लेकर आया हूँ ! तो रंगनाथ जी ने कहा पिताजी आपने कहा था कि दीं दुखियों की सेवा करने से परलोक मे अमरफल मिलता है ,इसीलिए जब मै फल लेने गया तो एक पीड़ित परिवार मुझे दिखा तो मैंने उन पैसों से उन्हें भोजन लाकर खिला दिया ! पिताजी ,मै फल लेकर आता और हम सभी फल खाते तो हमारा मुहँ कुछ देर के लिए मीठा होता पर उनकी तो तीन दिन की भूख चली गई ! इतना सुनना था कि पिता ने उन्हें छाती से लगा लिया !
ये है करुणा का एक अनुकरणीय उदाहरण ! वो करुणा अपने अंदर जाग्रत हो ! अपनों पर तो सभी करुणा कर लेते हैं पर जो करुणा सब के ऊपर हो ,वो करुणा हम सब के जीवन मे विकसित हो !वो करुणा हमारे अंदर तभी विकसित होगी जब संवेदनाएं विकसित होंगी !
लेकिन मेरा ऐसा देखने मे आता है कि आज के मानव मे संवेदनाएं समाप्त होती जा रही है ! हर पल हर समय मनुष्य सिर्फ पैसे के पीछे भाग रहा है ,फिर जीवन मे करुणा का विकास कहाँ से होगा

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