दो प्रकार की
वृत्तियाँ होती हैं ! एक कुत्ते की वृत्ति होती है और एक सिंह की वृत्ति होती है !
दोनों मे बड़ा अन्तर होता है !कुत्ते और सिंह मे बड़ा अन्तर होता है ! कुत्ते को यदि
कोई पत्थर मारता है तो वह पत्थर की तरफ लपकता है और जब तक वह उस पत्थर की तरफ
लपकता है उसे दो चार पत्थर और पड़ जाते हैं !लेकिन शेर के लिए यदि कोई गोली चलाता
है तो शेर बन्दुक की तरफ न देखकर गोली चलाने वाले की तरफ वार करता है और शेर जीत जाता है ! बस यही अन्तर है
ज्ञानी और अज्ञानी मे ! अज्ञानी निमित्त के पीछे भागता है जबकि फैंकने वाला तो
हमारे भीतर का कर्म है ! कर्म की तरफ जिसकी दृष्टि नही जाती वह निमित्त की तरफ
भागता है तो उस पर दो चार पत्थर और पड़ जाते हैं और वह राग द्वेष कर दो चार कर्म और
बाँध लेता है ! लेकिन सम्यक दृष्टि
निमित्तों को दोष कभी नही देता है ! अगर उसके सामने कोई प्रतिकूल निमित्त आता है
तो वह उस निमित्त को देख विचलित होने की जगह अपने कर्म की तरफ देखता है और समता के
प्रहार से उस कर्म को जड से काट देता है !
कर्म का ही अन्त कर देता है ! सिंह की तरह अपनी दृष्टि बनाएँ ! निमीत्तोंमुखी होने
से बचें ! हम बहुत जल्दी निमित्तों से प्रभावित हो जाते हैं ! किसी ने जरा सी
तारीफ़ कर दी तो खिल जाते हैं ! किसी ने टिप्पणी की तो खौल गए ! पल मे खिलना, पल मे
खौलना ! ये अज्ञान है ! सम्यक दृष्टि वो होता है जो न तारीफ़ मे प्रसन्न होता है न
टिप्पणी मे खिन्न होता है ! ये एक दुर्बलता है !
मुनिश्री 108 प्रमाण सागर जी की पुस्तक "मर्म जीवन का" से
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