मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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Wednesday 11 April 2012

तृष्णा न पूरी हुई डोली पे चढ़ते देखे

               एक शिकारी ने वन मे जाकर अपने धनुर्बाण से एक हिरण को मारा ! उसी समय एक काले सर्प ने उसे डस लिया ,जिसके डसने से वह शिकारी बेसुध होकर गिर पड़ा ! उसके नीचे दब जाने के कारण वह सर्प मृत्यु को प्राप्त हो गया और जहर चढने के कारण शिकारी मृत्यु को प्राप्त हो गया ! अपनी अपनी करनी का फल दोनों को प्राप्त हो गया ! तभी वहाँ से एक भेडिया निकला व सोचने लगा - आज का दिन कितना अच्छा है ,एक ही साथ हिरण ,सर्प और मनुष्य तीनों का मांस खाने को मिलेगा ! अब तो कई दिन का गुजारा आराम से चलेगा ! अत: आज तो पहला दिन है ,आज इस धनुष की प्रत्यंचा की तांत से ही भक्षण कर के शुरुआत करता हूँ ! ऐसा विचार कर वह तांत को भक्षण करने लगा ,तभी धनुष का बाँस उसके मुख मुख  मे लग जाने से वह मरण को प्राप्त हो गया !यह सब अति लोभ का ही दुष्फल था ! 
             अत: सुख शान्ति चाहने वालों को लोभ ,लालच तृष्णा से दूर रहना चाहिये और संतोष को धारण करना चाहिये !

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