मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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Sunday, 29 April 2012

असली आँख मरुस्थल जैसी ,नकली मे नीर छलकता है !

एक सेठ था ,बड़ा ही कंजूस था ! एक दिन एक भिखारी उसके यहाँ पहुँच गया ! 
बोला -सेठ जी कुछ दे दो ! उस इलाके मे शायद नया नया भिखारी था ,बाकी भिखारी तो जानते थे की इसके पास कुछ मिलना तो है नही ! पर वो नही जानता था इसीलिए पहुँच गया ! सेठ ने उसे टालना चाहा !भिखारी ने कहा सेठ जी दो दिन से भूखा हूँ ! कुछ दे दो ! सेठ जी ने कहा चलो यहाँ से ,सुबह सुबह आ जाते हो ,तो भिखारी ने कहा कि सेठ जी कुछ तो दे ही  दो आज तो खाली नही जाऊँगा ! रोने गिडगिडाने लगा ,जाने का नाम ही ना ले  ! सेठ जी खीजते हुए कहा - मेरी दो आँखें हैं ,इनमे से एक आँख नकली है,पत्थर की , और एक आँख असली है ! तुम यह बता दो कि कौन सी आँख असली है और कौन सी नकली !भिखारी ने गौर से दोनों आँखों कि ओर  देखा और कहा कि सेठ साहब आपकी बाइं आँख पत्थर की है ! हकीकत मे उस सेठ की बाइं आँख ही पत्थर की थी ! सेठ ने कहा -तुमने बिलकुल सही बताया ,मगर एक बात और बताओ कि तुमने कैसे जाना कि मेरी बाइं आँख ही पत्थर की है ! भिखारी ने कहा -सेठ जी उसी बाइं आँख मे ही थोडा थोडा पानी दिख रहा था ! कंजूस आदमी की असली आँख मे पानी नही  आ  सकता है नकली आँख मे ही पानी आ सकता है ! सत्य है जिसकी आँखों मे पराई पीड़ा को देखकर नीर न बहे उस व्यक्ति को बहुत कठोर समझना चाहिए !
आचार्य श्री कहते हैं 
भूखे परिजन देखकर भोजन करते आप !
फिर भी खुद को समझते दयामूर्ति निष्पाप !!
अरे  कोई भूखा बैठा है और आप खुद खा रहे हो और अपने आपको दयालु समझ रहे हो ! नही ,आपका कर्तव्य तो यही है की आप किसी को रोटी खिला कर ही खाएं ,यही हमारी संस्कृति है !धरम के इस स्वरुप को आत्मसात करो और फिर देखो धर्म की प्रभावना का क्या स्वरुप होता है ! लेकिन दुःख इस बात का है कि आज लोग इं बातों की अनदेखी करने लगे हैं !


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