एक व्यक्ति बचपन मे ही गुरु के पास दीक्षित हो गया ! गुरु के पास रहता ,उनकी सेवा भक्ति करता ,जिस कमरे मे गुरु रहते उस कमरे की सफाई करता ! एक दिन वह कमरे की सफाई कर रहा था ! कमरे मे सफाई कर रहा था ! कमरे मे गुरु की प्रिय एक मूर्ति थी ! शिष्य के हाथ से वह मूर्ति नीचे गिरी व टूट गयी ! शिष्य घबरा गया ! उसने सोचा गुरूजी को यह मूर्ति अपने गुरु से मिली थी ! वे गुरु द्वारा प्रदत्त इस मूर्ति की बड़ी महिमा गाते हैं ! इस खंडित मूर्ति को देखकर वो क्या सोचेंगें ? अब मै क्या करूँ ? सहसा एक उपाय उस के दिमाग मे कौंध गया ! कुछ समय बाद गुरु उस कक्ष मे आये ! शिष्य ने गुरु से प्रणाम कर निवेदन किया -गुरुवर ! एक जिज्ञासा है ,उसका समाधान कराएं !
गुरु बोले -"बोलो ,क्या कहना चाह्ते हो तुम ?
"आदमी मरता क्यों है ? मै इसका कारण जानना चाहता हूँ !" शिष्य ने कहा !
"इसका सीधा उत्तर है -समय आ गया ! जब समय आता है ,आदमी मर जाता है ! "
उसी समय शिष्य ने वस्त्र मे छिपाई हुई मूर्ति गुरु के सामने रख दी और कहा -गुरुदेव ! यह मूर्ति टूट गयी !"
"अरे ,यह कैसे टूटी ?"
"गुरुदेव ! इसका समय आ गया !"
"समय आ गया ?"
" हाँ ,गुरुदेव !आपने ही कहा था ,जब समय आता है तो आदमी मर जाता है ,उत्पन्न चीज नष्ट हो जाती है !"
गुरु शिष्य के इस कथन पर मुग्ध हो गए ! गुरु ने कहा !" मूर्ति टूट गयी तो कोई बात नही ,किन्तु जीवन मे तुम इस बात का ध्यान अवश्य रखना ! कभी तुम्हारा कोई प्रिय व्यक्ति मर जाए ,तुम्हे यही सोचना है -समय आ गया ,इसीलिए चला गया ! इसके सिवाय कुछ और नही सोचना है "
शिष्य ने कहा -गुरुदेव ! मेरे लिए यह एक बोधपाठ है ! इसे मै कभी नही भूलूँगा !
जब भी कोई घटना घटती ,वास्तु नष्ट हो जाती ,गायब हो जाती वह यही सोचता समय आ गया ! इसीलिए ऐसा हुआ !
हरेक घटना एक बोधपाठ दे जाती है ,यदि हम लेना चाहें !
महान आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी "अंतस्तल का स्पर्श " मे (एक बार अवश्य पढ़ें )
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