जो अपनी इन्द्रियों को पूरी तोर पर वश मे रखने वाले हैं ,उन्हें जिन कहते हैं ! जिन ही देव हैं ,पूज्य हैं आराध्य हैं ! जिन के ऐसे अनुयायीओं को जैन कहते हैं अत: जिन भगवान का अनुकरण करने वाले जनों को ,शरण ग्रहण करने वालों को मधु .मांस और मद्द्य का पूर्णतया त्याग करना चाहिये ! सदाचार का पालन करने वालों को भी इनका सर्वथा त्याग सर्वप्रथम ही कर देना चाहिए ! क्योंकि जिन भगवान का धर्म अहिंसामयी है ! यहाँ हिंसा सम्बंधित कार्य सर्वथा अशुभ निंद्द्य व गलत माने गए हैं !
इनमे से मधु और मांस का भक्षण करने से प्राणियों की हिंसा होती है ही , किन्तु मद्द्य पान करने से अन्य जीवों की हिंसा तो होती ही है ,बल्कि खुद भी मूर्छित हो जाता है जिससे कदाचित स्वयं के प्राणों का भी घात हो जाता है !
हमारे यहाँ तो बहुत पहले ही कही गयी और लोकाक्ति भी बन गयी कि “जैसा खाओगे अन्न वैसा बनेगा मन” इसीलिये मांसाहार का सभी को त्याग करना चाहिये ! मांस भक्षण में हिंसा है और हिंसा अधर्म है ! भारतीय परम्परा ‘शाकाहार’ अपनाने कि बात करती है ! मांसाहार अनेक रोगों का जन्मदाता भी है ! सभी धर्म ग्रंथों में अहिंसा को महत्व देते हुए शाकाहार अपनाने की बात की गयी है !
मनुष्य की शारीरिक संरचना भी मांसाहार के अनुकूल नही है ! मनुष्य के दांत ,आँत ,नाख़ून ,जीभ आदि सभी शाकाहारी प्राणियों की तरह ही है !कोई भी मनुष्य पूर्णत: मांसाहार पर नही रह सकता ! जबकि मांसाहारी प्राणियों के जीवन का मूल आधार मांस ही रहता है ! मांसाहारियों के दाँत तीक्ष्ण ,आंते छोटी एवं नाख़ून पैने होते हैं ,जबकि शाकाहारियों की आँत लंबी होती है ! मांसाहार आंतों के कैंसर का प्रमुख कारण है !
मांस की तरह अंडा भी मांसाहार के ही अंतर्गत आता है ! यह सिद्ध हो चूका है कि कोई अंडा शाकाहारी नही है !अंडे को शाकाहारी निरुपित करना अहिंसक संस्कृति के साथ एक मजाक है !क्या कोई अंडा पेड पर उगता है ? क्या साग सब्जी कि तरह अंडे को खेतों में उगाया जा सकता है ? अंडा भी शाकाहारी नही है वह तो मुर्गी के जिगर का टुकड़ा है !
वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि अंडा ,मांस और मछली सभी हमारे स्वास्थ्य के लिये घातक हैं !
मनुस्मृति के रचयिता मनु स्वामी ने छटवें अध्याय मे स्पष्ट रूप से मधु सेवन को वर्जित कहा है और इसका निषेध किया है !
यह लेख विभिन्न आचार्यों के धर्म ग्रंथों व पुस्तकों से लिए गए अंशों से बना है !
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