मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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Wednesday, 18 April 2012

गुरु कौन ?

एक राजा के मन मे विकल्प  उठा -मै गुरु बनाऊं ! प्रश्न आया कि गुरु कौन होगा ? राजा ने कहा -गुरु वह होगा !जिसका आश्रम सब से बड़ा है ! घोषणा करवा दी गयी -राजा गुरु बनायेंगे और उनको बनायेंगे जिनका आश्रम सब से बड़ा है ! 
सैंकडो साधु सन्यासी इकट्ठे हो गए ! सब अपने अपने आश्रम का बखान करने लगे ! कोई कहे पांच एकड़ ,कोई पचास एकड़ ,कोई सौ ,दो सौ .पांच सौ .हजार एकड़ ! 
सबने अपना अपना बखान कर दिया हजार एकड़ वाला सबसे बड़ा बन गया ! लोगों ने सोचा-इससे बड़ा आश्रम तो किसी का नही ! यही शायद राजा का गुरु बनेगा !एक सन्यासी ऐसे ही बैठा रहा !कुछ नही बोला ! 
राजा ने कहा -महाराज ! आप भी बताएं ,आपके पास क्या है ?

वह बोला -राजन, मै आपको यहाँ नही बता सकता ! आपको मेरे साथ चलना होगा ! 
राजा साथ हो लिया ! सन्यासी राजा को घने जंगल मे ले गया ! गहरा जंगल !चारों और न कोई मकान न कुछ और ! एक बड़ा बट का वृक्ष था !सन्यासी उसके नीचे जाकर बैठ गया !बोला -यही मेरा आश्रम है राजन !
राजा  ने पूछा -कितना बड़ा है ?
"जितना बड़ा ऊपर आकाश और जितनी नीचे पृथ्वी -इतना बड़ा आश्रम है ,जिसकी कोई सीमा नही है ! "सन्यासी का सटीक उत्तर था !
राजा सन्यासी के चरणों मे गिर पड़ा ! बोला- आप ही मेरे गुरु हो सकते हैं ! मै आपका शिष्य हूँ ! मुझे स्वीकार करें !
गुरु  वह बन सकता है जिसके पास अपना कुछ भी नही है ! एक कौड़ी भी नही है ! एक इंच भूमि भी नही है ! पूर्ण आकिंचन है ! ऐसा व्यक्ति ही गुरु बन सकता है !
जिसने अपना सब कुछ छोड़ दिया ,वह सबका नाथ बन गया ! 
आचार्य श्री महाप्रज्ञ की पुस्तक "अंतस्तल का स्पर्श " से

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