मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

सभी को इसे Copy/Share करने की स्वतंत्रता है !

कोई कापीराइट नहीं ..........

Saturday, 31 December 2011

आज का विचार 31.12.2011

दम का नही भरोसा रे करले चलने का सामान !

सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार

शुभ प्रात:

Friday, 30 December 2011

आज का विचार 30.12.2011


भगवान बनने कि कोशिश करोगे तब कहीं
जाकर अच्छे इन्सान बन पाओगे !

आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
 “एक लाख की एक एक बात “ से सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु
,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार

शुभ प्रात:

आज का विचार 30.12.2011

जिन लोगों ने तुम्हारे साथ बुराई की है उसको शीघ्र भूलजाओ क्योंकि उनका एक क्षण का भी स्मरण अनन्त जन्मों के अर्जित आनंद को पल में नष्ट कर देता है !
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार

शुभ प्रात:

Thursday, 29 December 2011

आज का विचार 29.12.2011



यह देह मरघट में जाए ,इससे पहले
इसे देवालय बना लो !

आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
 “एक लाख की एक एक बात “ से सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु
,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार

शुभ प्रात:

आज का विचार 29.12.2011


एक पल का क्रोध आपका भविष्य बिगाड़ सकता है !
            
मुनिश्री 108  सोरभ सागर जी महाराज 

सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार

शुभ प्रात:

Wednesday, 28 December 2011

आज का विचार 28.12.2011


ध्यान और स्वाद्ध्याय के बिना मन स्थिर नही होता !


आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु
,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार

शुभ प्रात:

विचारधारा

मानसिक विचारधारा का प्रभाव दूसरों पर
बहुत जल्दी पड़ता है ,जिस व्यक्ति की 
भली अथवा बुरी जैसी भी आपकी विचारधारा
होगी ,सामने वाले की भी वैसी ही बन जायेगी
अत: हर व्यक्ति को अपनी विचारधारा स्वच्छ
रखनी चाहिये !
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार

शुभ प्रात:

Tuesday, 27 December 2011

आज का विचार 27.12.2011



वैयावृत्ति(सेवा) न करने से तीर्थंकरों की
आज्ञा  भंग होती है !

आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार


आज का विचार 27.12.2011

स्वपन में भी किसी के प्रति दुर्भावना न  होना 
सच्चा धार्मिक बनने की दिशा में पहला कदम है !

सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं

को यथोचित नमोस्तु,वन्दामि ,  मत्थेण वन्दामि  ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार

शुभ प्रात:

Monday, 26 December 2011

आज का विचार 26.12.2011


आज का विचार 26.12.2011


अस्थियां बिखरें उससे पहले आस्था जमा लो !


आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

Sunday, 25 December 2011

निर्जीव की सजीव बातें स्तम्भ व जीना

 "स्तम्भ" व "जीना "
श्री मंदिर जी के चारों खम्भे जिनके कन्धों पर पूरी मंजिल का भर रखा हुआ था -एक दिन एकान्त में सीढ़ियों से बोले -तुम पर न बोझ है ,और न तुम मंदिर जी का कोई भार उठाती हो फिर भी लोग तुम्हे आदर से "जीना " शब्द से संबोधित करते हैं !जो संभवत: संसार का गौरवतम शब्द है ! इस प्रकार के गौरवमय शब्द से हमें तो कोई संबोधित नही करता !
सीढियां मुस्कुराई -फिर धीरे से बोली -तुम सिर्फ भार उठाना जानते हो ! सिर्फ भार उठाना जीना नही है
फिर तुम कौन सा अनोखा कार्य करती हो -एक खम्भे ने कहा !
सुनो ,मै नीचे धरातल पर खड़े मानवों को चुपचाप ऊपर के स्तर तल पर उठाती हूँ ! बताओ किसी को नीचे से ऊपर उठाना क्या कम गौरव का काम है -"जीना" ने कहा 
तब  उनमे से एक खम्भे ने सोचकर कहा -यह कार्य तो वास्तव में महत्वपूर्ण है !
सीढियां पुन: बोली और सुनो यह कार्य करने में मुझे कदम -कदम पर पदाघात सरीखे अपमान को सहना पड़ता है ,शास्त्र बार -बार सीख देते हैं कि पदाघात सरीखे अपमान को सहकर भी नीचेवालों को ऊपर उठाने में अपना जीवन लगा दे उसी का जीना वास्तव में "जीना " है ! मै शास्त्र की  लीक पर चल रही हूँ ,इसी से लोग आदर से मुझे "जीना" शब्द से संबोधित करते हैं !
उत्तर  पाकर खम्भे स्तंभित रह गए -तभी से लोग इन्हें स्तम्भ कहने लगे ! उन्होंने भी सनातन सत्य जान लिया कि जिसका ध्येय नीचों को ऊपर उठाना है ,उसी का जीना वास्तव में "जीना " नही तो केवल संसार का भार ढोना ही है !
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार



आज का विचार 25.12.2011


आज का विचार 25.12.2011

भय से मुक्त होने के लिए अभय की भावना
रखो ! अर्थात जीवन दान दो !

आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

Saturday, 24 December 2011

निर्जीव की सजीव बातें कलश और नींव

  कलश  और नींव 
मंदिर के कलशारोहण  के पश्चात नीचे दबी नींव ने कलश से सस्नेह कहा - तुम आ गए बंधू ,अपने बंधू के दर्शन से अपर बंधू को आनन्द प्राप्त होता है ! 
 कलश ने घृणा भरी दृष्टि डाली और गर्व से कहा -तुम जमीन के नीचे धंसी निम्न और मै आकाश में उन्मुख उच्च ! फिर तुम में और मुझ में कैसी मित्रता ,कैसा बन्धुत्व !
इसीलिए की तुम और मै एक ही मंदिर के अवयव हैं -नींव ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा !
हा हा हा ,तुम अँधेरे में लिपटी धुल मिटटी में सनी  और मै उज्जवल चमकीले प्रकाश में, बन्धुत्व कैसा ? और ........
 मेरा शरीर  बहुमूल्य धातु से निर्मित हुआ है और तुम ..............कंकरों पत्थरों से  से बनी  हुई   -कलश ने घमंड से कहा !
तुम्हारी और मेरी जननी एक खदान ही तो है ,बस फर्क सिर्फ इतना है कि तुम संस्कारित हो और मै प्राकर्तिक रूप में ! भाग्य ने तुम्हे शिखर पर बिठाया है और मुझे पादमूल में !
तुम वर्तमान को देखो -मै कितना उच्च और तुम तिमिरावृत ..........इतनी विषमता में समता कहाँ शोभनीय है 
अपमानित नींव कुछ धीरे लेकिन गंभीर स्वर में बोली --ठीक है पर तुम ये मत भूल जाना कि ये दीवारें और गुम्बद जिनके सिर पर चढ कर तुम इतना इतरा रहे हो , मेरे ऊपर ही खड़े हैं -मै अगर एक करवट ले लूँ तो तुम सबका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा ! 
अब कलश ने गंभीरता से सोचकर नम्रता से कहा - सत्य कहते हो बन्धु ! उच्च कहलाने वाले कितने निम्नों पर आश्रित हैं ! उनके कंधे पर खड़े होकर वे ऊँचे होने का गर्व करते हैं !लेकिन वास्तव में हम सब समान धरातल पर हैं !
तभी  से नींव और कलश में बन्धुत्व है ,नींव भी मजबूती से दीवारों,गुम्बद को थामे हुए है !

आज का विचार 24.12.2011


आज का विचार 24.12.2011

अज्ञानी की जितनी विशुद्धि उपवास में होती है .
ज्ञानी की उतनी विशुद्धि भोजन करते हुए होती है !

आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार