धन कन कंचन राज सुख ,सब ही सुलभ कर जान ,
दुर्लभ है संसार मे एक जथारथ ज्ञान !
प० भूधर दास जी
परिजन धन कुछ न चले अन्त समय मे साथ
ज्ञान अडिग निज की निधि ,भव भव जावे साथ !
आचार्यों ने जिनवाणी को माता कहकर पुकारा है तथा उसकी स्तुति की है ,जिस प्रकार माता दूध पिलाकर बच्चे को बड़ा करती है ,उसी प्रकार जिनवाणी माता ज्ञानामृत पिलाकर अज्ञान रुपी अन्धकार को मेट ,सच्चा मार्गदर्शन करती है ! इसिलिए आचार्य पदमनंदी " पंचविर्ष्तिका "ग्रन्थ मे लिखते हैं -
हे जिनवाणी माता ! महान ऋषिगण पहले तेरा आश्रय लेकर ही मोक्ष पद को पाते हैं ,जैसे कि दीपक का आश्रय पाकर ही अँधेरे घर मे अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति की जा सकती है (श्लोक 779)
हे जिनवाणी माता ! तेरा यथाविधि मनन ,पठन ,समरण करने पर ऐसी कोई सम्पदा नही ,कोई गुण नही ,ऐसा कोई पद नही ,जिसको तु प्रदान न करती हो !अर्थात जिनवाणी के स्मरण से स्वर्ग ,मोक्ष पद की प्राप्ति होती है !(श्लोक 815)
जिनवाणी के प्रत्याक्षादी प्रमाणों के द्वारा पदार्थों के जानने वाले ज्ञानी के ,नियम से मोह का समूह क्षय हो जाता है ! संसार मे हमारा उपकार करने वाली है तो जिनवाणी माता ही है ,माता अपने बच्चों को गलत मार्ग पर जाने से रोकती है ,उसी प्रकार जिनवाणी माता जीवन पथ पर दीपक बनकर मार्गदर्शन कराती है ,इस माता का किया हुआ उपकार कभी नही चुकाया जा सकता !
सच्चे पथ की खोज करनी है तो जिनवाणी को ह्रदय रुपी मंदिर मे विराजमान करके ,विनयपूर्वक मनन ,चिंतन करें! तभी सच्चा सुख मिलना संभव है !
जैसे माता पुत्र को कर देती बलवान ,
जिनवाणी जगमात है ,अमर करा दे ज्ञान !
आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मति सागर जी "मुक्ति पथ की ओर " मे