प्रश्न : जो दिया बरसात मे बुझ गया ,
उसे फिर जलाकर क्या करूँ ?
जो स्वभाव विभाव मे खो गया ,
उसे वापस बुलाकर क्या करूँ ?
आप कहते हो तो मान लेता हूँ ,
मै भी शक्ति रूप परमात्मा हूँ !
जो परमात्मा स्वयं मे भटक गया ,
उसे घर वापस बुलाकर क्या करूँ ?
उत्तर : जो खोया है उसे ही तो पाना है !
जो सोया है उसे ही तो जगाना है ,
इतना उदास क्यों होते हो साथी ?
जो बुझा है उसे ही तो जलाना है !
तुम मे अनन्त की संभावना है,
उसे ही व्यक्त करके दिखाना है !
जो भूला है निज घर को यहाँ ,
उसे ही निज घर वापस आना है !
है रात तो कल सुबह भी आएगी ,
आज कली है ,कल फूल बन जायेगी !
घबराओ मत इस अमावस की काली रात मे,
कल सुबह नई रोशनी लेकर आएगी !
रोओ मत चाँद तारों की घनी रात मे ,
जागते रहोगे तो सुबह नई रोशनी ले आएगी !
तुम अनन्त शक्ति के स्त्रोत हो साथी ,
आचरण करोगे तो जिन्दगी मुस्कुराएगी !
आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागरजी
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