मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Friday 2 March 2012

अंतर दृष्टि

               व्यक्ति जब अपनी खुली आँखों से सृष्टि को देखने लग जाता है तब सृष्टि उसका बाल भी बांका नही कर सकती और जब आँख मिचौनी कर इस सृष्टि को भोगते हो या छुपी आँखों से इस सृष्टि को देखते हो तो वह तुम्हारे लिए अनिष्टकारी बन जाती है ,छुप कर के इस  सृष्टि को देखते हो तो यह उसका सर्वनाश करती है ! जो इस सृष्टि को खुली आँखों से भोगता है ,जो  इस सृष्टि को खुली आँखों से देखता है ,उसे यह सृष्टि उठाकर तीन लोक के ऊपर ले जाकर विराजमान कर देती है ! चमड़े की आँखों से क्यों देखते हो ? अपने आप को देखना है तो अपनी आँखों से देखो ,अंदर की आँखों से देखो !
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:

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