मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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Sunday 11 March 2012

मोहिनी कर्म

                           कभी कभी आपके मन मे किसी के प्रति प्रेम भाव जाग्रत हो जाता है इसका कारण बस इतना सा ही होता है कि दोनों के मन मे किसी न किसी कोने मे एक दुसरे के प्रति प्रेम भाव विद्यमान है ! इसीलिए एक दुसरे का आभामंडल मोहित कर रहा है ! इसे भगवान महावीर ने मोहिनी कर्म का प्रभाव कहा है ! पूर्व जन्मों के उपार्जित कर्मों का कार्य एक दुसरे को आकर्षित करना है ! किसी किसी के प्रति आपके मन मे तीव्र प्रेम भाव ,स्नेह भाव अत्यंत उत्कृष्ट होता है ! कभी कभी हम सफर मे होते हैं तो सहयात्री की ओर बरबस ही आकर्षित हो जाते हैं (और कभी कभी घंटों के सफर के बाद भी हम नमस्ते भी नही कह पाते !) जिस व्यक्ति की ओर हम आकर्षित होते हैं वो भले ही हमसे अपरिचित हो लेकिन उसका मन अवश्य ही पूर्व परिचित होता है ! मन कहता है उस से कुछ बात करो !घुलो मिलो ! स्नेह का हाथ उसकी ओर बढाओ और बस किसी भी बहाने से आप परिचित हो जाते हैं !  और कभी कभी तो भीतर भीतर आक्रोश होने लगता है ,मन रोने लगता है ,जीवन भर आप स्मरण करते हैं कि एक ऐसी मूर्ति मिली थी ,एक ऐसी पवित्र आत्मा के दर्शन हुए थे कितना सुखद था उनका व्यवहार ! ये सब मोहिनी कर्म का ही परिणाम है !
आचार्य 108  श्री पुष्पदंत सागर जी "परिणामों का खेल" मे

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