अज्ञान रुपी अन्धकार के प्रसार को यथा सम्भव उपायों के द्वारा दूर करके जिन शासन के महात्मय को जगत मे प्रकाशित करना प्रभावना अंग है !
जिस किसी ने प्रथ्वी मंडल के सभी राजाओं को अपना आज्ञाकारी बना लिया है ,जिसके बाहुबल के आगे टिकने मे कोई समर्थ न हो ,वह महाबली भी एक अबला के चंगुल मे फंसकर पानी पानी हो जाता है ! बड़े बड़े शूरवीरों के लोह्मयी वाणों से जिसका बख्तर नही भिद पाता ,वही बख्तर अबला के कटाक्ष वाणों से चूर-चूर होता देखा गया है !
मतलब यह कि दुनिया के लोगों को वश मे जरूर किया ,परन्तु अपने आपको वश मे नही रखा ! अपने मन को काबू मे नही रखा ! इसीलिए दुनिया को जीतने के लिए काम को जीतना जरूरी होता है ,जिसने काम को जीत किया वस्तुत: वही जिन है ! सर्व विजेता कहलाने का अधिकारी है !
जो हर्ष विषादादि सभी तरह के मानसिक विकारों से सर्वथा दूर हो वही जिन है और उन्ही जिन भगवान का यह उपदेश है कि हरेक मनुष्य को अपने मन व इन्द्रियों को काबू मे करें !
समझदार व्यक्ति को चाहिये कि अपने मन मे दुसरे की बुरी आदत से हटाकर सन्मार्ग पर लगाने का विचार करें ! किस उपाय से लोग ठीक राह पर आएं ये सोचें !
मीठे वचनों से उन्हें समझाएं और खुद अपनी ऐसी प्रवृत्ति बनाएँ जिसे आदर्श मानकर लोग उनका अनुसरण करने लग जाएँ ! सबसे पहली बात तो ये है कि हम जिस राह पर लोगों को चलना और देखना पसन्द करते हैं उस पर खुद चलें ! कहें कम और करें अधिक तो लोग अवश्य उसका अनुसरण करेंगें और यही सच्ची प्रभावना होगी !
मूल रचना : "रत्न करंड श्रावकाचार "मानव धर्म आचार्य श्री समन्तभद्र स्वामी
हिन्दी व पद अनुवाद : आचार्य श्री ज्ञान सागर जी व आचार्य श्री विद्या सागर जी
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