दुःख के कारणभुत कुमार्ग मे और कुमार्ग पर स्थित व्यक्ति मे मन से सहमति न देना ,काय से सराहना नही करना ,वचन से प्रशंसा नही करना अमूढदृष्टि अंग कहा जाता है !
दुनिया के बहुतायत मनुष्य अपना पेट पालना चाह्ते हैं ,अपनी रोटी को ताव देना चाह्ते हैं ,दूसरों से इर्ष्या द्वेष रखते हैं ! मनुष्य का असर सब प्राणियों पर पड़ता है ! प्राणियों पर ही नही ,बल्कि भूतल की समस्त चीजों पर मनुष्य की भावना का प्रभाव दिखाई पड़ता है क्योंकि मनुष्य सबका मुखिया है ! मनुष्य का दिल जब संकीर्ण होता है वह औरों की भलाई से मुहं मोड लेता है ,मेघ भी समय पर नही बरसते ,वृक्षों पर फल नही आते ,उन्हें हवा मार जाती है या कीड़े मकोड़े लग जाते हैं और वसुंधरा पर फसल पैदा नही होती ! सब दुखी हो जाते हैं ! मनुष्य अगर अपनी भावना बदल दे ,परोपकार मय बना ले तो फिर दुनिया की चीजें भी उसी रूप परिणत हो जाती हैं ! हम रामायण मे सुना करते हैं राम चन्द्र जहाँ भी जाते थे वहाँ सूखे घास हरे हो जाते थे ,सूखे तालाब पानी से भर जाते थे ! इसका कारण यही था कि उनके अन्तरंग मे सबके प्रति परोपकार की भावना प्रबल थी ! सन्मार्ग को उपादेय मान कर अपने आपकी भान्ति औरों का भी उपकार करे ,सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें ! एतावता सन्मार्ग पर चलते चलते कोई व्यक्ति स्खलित भी हो जाए तो सयाने आदमी उसे प्रयास करके फिर सन्मार्ग पर लाते हैं !
मूल रचना : "रत्न करंड श्रावकाचार "मानव धर्म आचार्य श्री समन्तभद्र स्वामी
हिन्दी व पद अनुवाद : आचार्य श्री ज्ञान सागर जी व आचार्य श्री विद्या सागर जी
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