अनादि काल से हमारे जीवन की कथा दुखों से भरी पड़ी हुई है ! सच्चा आनन्द हमें कभी एक क्षण के लिए भी नही मिला ! समग्र जीवन ऐसे ही बीत जाता है ! दुःख और पीड़ा हमारे जीवन के साथ जुडी है ! इन्द्रियों के सुख मे लीन प्राणी शरीर के स्तर पर ही सोचता है ! कभी कोई जागा भी तो संसारी लोगों ने उसे फिर से सुला दिया ...सुलाने का प्रयास करते रहे ,जगाने की बात हमने एक समय भी नही की ! जो जागता है ,वह धर्म के मार्ग पर चलने लगता है ,जिसे कुछ लोग पागल भी कहते हैं ! आप लोग धर्म के रास्ते पर चलने से डरते हैं क्योंकि विषय वासनाओं के अभ्यस्त हो चुके हैं ! आप लोग मृत्यु की बात करते हैं ,क्योंकि जीवन से परिचय नही हुआ अब तक !
आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी
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