नांगल (गृह प्रवेश ) की परम्परा आज की नही है बहुत पुरानी है ! मकान बनाने के बाद सारे रिश्तेदारों ,मित्रों को बुलाकर नांगल करवाया जाता है ! पांडवों ने भी खान्द्प्रस्थ को इन्द्रप्रस्थ मे परिवर्तित करके नांगल किया ! उसमे दुर्योधन भी आया ! ओह ! आह ! देखते ही दंग रह गया ! आश्चर्यचकित ,कहीं पर जाता है ,सोचता है यहाँ जल होगा ! अपना चूडीदार पजामा ऊपर को करता है ,कहीं गीला न हो जाए लेकिन वहाँ पर जमीन पाता है !जहाँ पर जमीन जैसा देखने मे आता है वहाँ swimming pool जैसा जलकुंड था ,अत: धडाम से गिर जाता है ! यही तो संसार है ,सारा का सारा संसार माया के जल से भरा हुआ है ! यह सारा संसार मृग मरीचिका है ,इंद्रजाल है !और इस इंद्रजाल मे तुम कब गिरते हो ,कहाँ उठते हो ,जहाँ गिरने की संभावना है वहाँ दौड जाते हो ,जहाँ दौड़ने की संभावना है वहाँ गिर जाते हो ! दुर्योधन सारी आत्माओं मे बैठा हुआ है ! हँसी हँसी मे द्रोपदी कह गई " अन्धे के पुत्र अन्धे ही होते हैं !" दुर्योधन कहता है -बता दूँगा ! अन्धे के पुत्र अन्धे कैसे होते हैं ! एक वाक्य -कटु वचन ,कठिन वचन ने एक शीलवती स्त्री के भरी सभा मे चीर हरण की नौबत ला दी ! दुर्योधन कहता है -द्रोपदी,हम तो अन्धे के पुत्र हैं,अन्धे ही हैं अन्धों के सामने नग्न होने मे कैसी शर्म ? एक वाक्य ने महाभारत करवा दी !कितना खून खराबा हुआ ! सारा झगडा मात्र बातों का है ! महाभारत को खोजो तो प्याज के छिलके हैं ! उतारते जाओ ! उतारते जाओ ! अन्त तक छिलके ही मिलेंगें ! कोई सार नही ! मूर्खों का युद्ध है !
शिक्षा यही है, अगर हम अपने जीवन मे उतारे तो कि वाणी का संयम सबसे जरूरी है
मुनि श्री 108 सुधासागर जी महाराज "दस धर्म सुधा " मे
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