मुनिराज पेड के नीचे बेठे थे ! ध्यानमग्न ! कर्मो की होली जला रहे थे ! दो श्रावक वहाँ से निकले ! तीर्थंकर प्रभु के समवशरण मे जा रहे थे ! वो समवशरण मे जाते ही भगवान से पूछते हैं ! भगवन ! हमारे नगर के राजा ने मुनि दीक्षा ग्रहण की है और वे पेड के नीचे बेठे ध्यान कर रहे है ! उनके संसार मे कितने भव शेष हैं?
तीर्थंकर प्रभु की वाणी मे आया - उनके संसार मे इतने भव शेष हैं जितने उस पेड मे पत्ते !
श्रावक -प्रभु ! वो तो इमली के पेड के नीचे बैठे हैं ! इमली के पेड के पत्ते गिने जा सकते हैं क्या ?
भगवन ने कहा -हाँ उतने ही भव शेष हैं
श्रावको ने पूछा -और भगवन हमारे ?
भगवन -तुम्हारे केवल सात व आठ भव शेष हैं !
वे श्रावक क्या थे कि बस अहंकार मे फूल गए कि मुनि के इतने भव शेष हैं जितने इमली के पेड मे पत्ते व हमारे केवल सात व आठ !
सम्यक्दर्शन का अभाव था ! मुनि के पास आये और आते ही कहा ! अरे पाखंडी घर बार छोड़ कर किसलिए तपस्या मे लगे हो ,तुम्हे अभी संसार मे इतना भटकना है ,इतने भव धारण करने हैं जितने इस इमली के पेड मे पत्ते !
मुनिराज मुस्कुराए -सोचते हैं तीर्थंकर प्रभु की वाणी मिथ्या तो हो नही सकती ! कम से कम इतना प्रमाण तो मिल ही गया कि मुझे केवलज्ञान होगा ! मोक्ष सुख की प्राप्ति होगी ! मुनिराज ने समाधिमरण किया व पहले का निगोद आयु का बंध किया हुआ था सो निगोद मे चले गए ! और निगोद मे एक भव कितने समय का ? एक श्वांस मे अठरह भव होते हैं ,निगोद मे इमली के पत्तों के बराबर भव काटने हैं ! एक सप्ताह के अंदर निगोद मे गए भी और वापस भी आ गए ! निगोद से निकलकर उसी नगर मे मनुष्य भव धारण किया अर्थात आठ वर्ष अंतरमुहूर्त के बाद फिर मुनि गए और बैठ गए ध्यान मग्न उसी इमली के पेड के नीचे ! एक अंतर मुहूर्त अगले मनुष्य भव का ,आठ दिन निगोद आयु के व आठ वर्ष बालक अवस्था के ! वही श्रावक फिर उसी रास्ते से तीर्थंकर प्रभु के दर्शन को गुजरे ! समवशरण मे पहुँच कर प्रभु से वही सवाल !
भगवन कहते हैं -आठ वर्ष पहले जो मुनिराज वहाँ तप कर रहे थे ,ये मुनिराज उसी मुनि का जीव है जो निगोद मे अपनी बंध की हुई आयु पूरी करके फिर से मनुष्य भव मे आकर तप कर रहे हैं और जब तक तुम वहाँ वापस पहुंचोगे उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी होगी !
ओह धिक्कार है हमारे इस जीवन को अभी हमें सात आठ भव मे न जाने कितना काल इस पृथ्वी पर बिताना है और धन्य है उन मुनिराज का जीवन जो हमारे जीते जी ही केवल ज्ञान को प्राप्त हो गए !
हम अहंकार मे रहते हैं कि मै मनुष्य हूँ और चींटी को रोंद देते हो पैरों से ! ध्यान रखना चींटी हमसे व तुमसे पहले मोक्ष जा सकती है अगर मरकर विदेह क्षेत्र का मनुष्य योनि का पहले बंध किया हुआ होगा !
मुनि श्री 108 सुधासागर जी महाराज "दस धर्म सुधा " मे
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