कृष्ण लेश्या
यदि कोई व्यक्ति कहता है कि मैंने पूडियां बनाई है ,पराठे बनाये हैं और वह चाहे कि मै रोटी खाऊं तो क्या यह संभव है? जो बनाया है वही तो खायेगा ! कितनी सरल व स्पष्ट बात है यह ! जो भाव वर्तमान में करोगे ,आखिर वे ही तो सामने आयेंगे?
इसीलिए अत्यंत सावधानी पूर्वक अपने भावों क देखभाल करते रहो ! यदि आपसे किसी कि निंदा हो रही है,किसी की बुराई हो रही है ,तो तुरंत उन भावों को पकड़ लो ! सोचो विचार करो और मन से कहो - ‘नहीं’ ये भाव तुम्हे नहीं करने है ! इनसे परावृत हो जाओ !ये नितांत अशुभ भाव हैं ,जिस प्रकार हम अबोध बच्चों को बुराई से परावृत करते हैं ,उन्हें समझाते हैं , उसी प्रकार आपको अपने चंचल मन को भी समझाना है अन्यथा इसकी गति बिगड जायेगी !
आचार्य 108 श्री पुष्पदंत सागर जी की “परिणामों का खेल” से
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