दुनिया को मैंने नही भोगा ,बल्कि दुनिया के द्वारा मै भोगा गया हूँ !काल को मैंने समाप्त नही किया ,बल्कि काल के द्वारा मुझे समाप्त कर दिया गया है ! दुनिया को मै संतप्त नही कर पाया ,बल्कि दुनिया ने मुझको संतप्त किया है ! तृष्णा जीर्ण नही हुई बल्कि मै जीर्ण हो गया !जो मेरी थी ,मेरी है ,और मेरी रहेंगी ऐसी आत्मा को भोगने का प्रयास नही किया कभी ! अब तो मुझे अपनी आत्मा का स्वाद लेना है !यही अंतिम एवं सबसे बड़ा कार्य शेष रहा है ! ऐसा विचार करता हुआ ही मनुष्य आकिंचन धर्म की ओर बढ़ने का प्रयास कर सकता है !सबसे कठिन कार्यभव्य जीव के लिए है अपने से ही मुलाक़ात करना ! जीव की एक बार अपने आप से मुलाक़ात हो जाए वह दुनिया की समस्त तस्वीरें भूल जाता है ओर जब भी किसी तस्वीर को देखने का भाव करता है तो तुरंत उसका ज्ञान बोल पड़ता है कि ;
अपनी आत्मा मे ही है तस्वीरे यार दुनिया की ,जब जरा गर्दन झुकाई देख ली !
एक म्यान मे दो तलवारें नही रह सकती ! सांसारिक पर पदार्थों को भोगने की लालसा जिस व्यक्ति मे है उसे सच्चा सुख ,आत्मा का सुख प्राप्त नही हो सकता ! न तो परिग्रह वान को मोक्ष मिला है न ही मिलेगा कभी ! किसी ने कहा है ;
दुनिया मे उसने बड़ी बात कर ली
जिसने अपने आप से मुलाकात कर ली
मुनि श्री 108 सुधासागर जी महाराज "दस धर्म सुधा " मे
सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
को यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
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