विनोबा भावे कि माताजी जामण डालकर दही जमाती थी और राम का नाम लेती थी
! विनोबा जब बड़े हो गए तो उन्होंने कहा- कि माँ और सब बातें समझ मे आती हैं ! ये
बताओ दही जामण से जमता है या ईश्वर का नाम लेने से ? यह स्पष्ट कर दो ! आगे हमें
बहुत जरूरत पड़ेगी ! आप तो अभी जमाती हैं ,पर हम रोज देखते हैं कि जामण भी डालती
हैं और राम का नाम भी लेती हैं ! इसका मतलब है कि दोनों से ही जमता है क्या ? या
किसी एक से जमता है ? अगर किसी एक से जमता है तो या तो जामण डालना बंद कर दो या कि
भगवान का नाम लेना बंद कर दो ! क्या मामला है ?
तो उसकी माँ ने हंसकर कहा- बेटे जामण देने से ही दूध का दही बनाता है !
जामण से ही जमता है तो फिर ईश्वर की क्या आवश्यकता ?
बेटे सिर्फ आवश्यकता इतनी है
कि कल सुबह जब दही जम जाएगा तो मुझ मे यह अहंकार न आ जाए कि मैंने जमाया है
,इसीलिए राम का नाम भी ले लिया ! मेरी श्रद्धा मेरे इस कर्तापने और अहंकार को कि
मै करता हूँ ,इसको नष्ट करती है ! इसीलिए ईश्वर के प्रति श्रद्धा भी आवश्यक है ! ईश्वर का इतना बड़ा रोल
है ! यह समर्पण बहुत जरूरी है ईश्वर का मेरे जीवन मे ! मै उसके प्रति श्रद्धा रखूं
और अपने अहंकार को ......अगर कहीं कल को दही नही जमती है तो मै किसी को शिकायत न
करूँ ! मै किसी को दोषी न ठहराऊं ! मै
संक्लेश न करूँ ! इससे मुझे ईश्वर बचा लेता है ! मुझे अहंकार और संक्लेश दोनों से
बचाने मे मदद करता है !
ईस्वर की मेरे जीवन मे मदद इतनी ही है ! मै ज्ञानवान हूँ तो मुझे
अहंकारी बनने से रोकता है ! और मुझने जो कमियां
हैं उन्हें दूर करने की प्रेरणा मिलती है ! बस इतना सा रोल है उसका और ये बहुत बड़ी
चीज है !
मुनिश्री क्षमा सागर जी "कर्म कैसे करें" में
यह घटना आज के सन्दर्भ मे भी कितना बड़ा महत्व रखती है ! आज हम मामूली
सा भी किसी का काम कर पायें अहंकार मे फूल जाते हैं !
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