कष्ट को अग्नि कहा है ,लेकिन मिटटी का कच्चा घड़ा
अग्नि परीक्षा देता है,कच्चे फल सूर्य की संतप्त किरणों
से तपते हैं ,तब मधुर और सुस्वादु होते हैं ,फुल सुईं मे
बींधकर ही गले का हार बनते हैं ,चन्दन घिसने पर ही
सुगन्ध देता है ,अत: कष्टों मे तपकर ही जीवन सोना
बनता है !
आर्यिका 105 माता स्वस्ति भुषण जी की
“एक लाख की एक एक बात “ से सभी मुनि,आर्यिकाओं ,साधु,साध्वियों,श्रावक,श्राविकाओं
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
शुभ प्रात:
को यथोचित नमोस्तु ,वन्दामि , मत्थेण वन्दामि ,जय जिनेन्द्र,नमस्कार
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