मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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कोई कापीराइट नहीं ..........

Thursday 2 February 2012

अहंकार

                       अहंकार के पीछे जो "कार" शब्द लगा है ,वह "कार" छुडवाऊंगा ! अहं नही छुडवाऊंगा ! अहं तो आत्मा का स्वभाव है ,अहंकार विभाव है ,बस जहाँ "कार" आ गयी ,वहीँ तुम बेकार हो गए और "कार"छूट गयी तो अहं रह गया ! मै एक हूँ ! अहंपना तो स्वभाव है ,अहंपने को तुम त्यागना भी चाहो तो त्याग नही पाओगे !क्योंकि जो आत्मा का स्वभाव है/आत्मा का लक्षण है ,उसे कौन त्याग सकता है !उसे त्यागने का प्रयास भी मत करना ! अहं के बाद जो "कार"लगा है उसे छोड़ देना ,वही छोड़ने योग्य है !
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                     एक सेंटीमीटर के सौवें हिस्से को चमड़ी से हटा दी जाए ,तो सबका शरीर एक सा बना हुआ है ,वही खून ,वही मांस मज्जा ,वही हड्डी ,वही चमड़ी ,सबका एक ही रंग है ! यह ऊपर की चमड़ी गोरी है या काली ,नीली है या पीली ,बस इसी से राग कार लो ! एक सेंटीमीटर के सौवे हिस्से के नीचे न राग करने की वस्तु है न द्वेष करने की वस्तु है! वह तो त्यागने योग्य वस्तु है ,यदि एक सेंटीमीटर हटा दें तो सारे गिद्ध पक्षी मरघट से उठ कर यहाँ आ जायेंगे और तुम्हारे को उठा कर ले जायेंगें ! 
मुनि श्री 108 सुधासागर जी महाराज  "दस धर्म सुधा " मे 

     

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