आत्मा के अनुभव के बिना जो सयंम को धारण करते हैं वे संयम से उब जाते हैं ! आप कभी सुनार के यहाँ जाना ,उसकी भटठी मे एक चीनी मिटटी की हंडिया होती है ,उसमे आपका सोना रख दिया जाता है ! भटठी मे सोना क्यों रखा गया ? उसका मैल निकालने के लिए ! दोष निकालने के लिए ! सोना रख देंगे हंडिया के अंदर ,और अग्नि मे जला देंगे ,ऊपर से सुहागा फैकते हैं ! उसमे सुहागा डालने से क्या होता है ? सुहागे से मैल काटकर नीचे हंडिया मे चिपक जाता है और सोना शुद्ध हो जाता है ! सोने के पिघलने के लिए संयम की जरूरत है ,और सोना पिघल रहा हो तो उसमे सुहागा डालना यह ज्ञान का काम है ! पिघले हुए सोने मे सुहागा डाल दो ! सारा मैल काटकर अलग हो जाएगा !पूछ लेना उन से जो भटठी मे सोना तपाते हैं ! तभी से यह पंक्ति बनी है "सोने पे सुहागा हो गया " ! संयम को धारण कर लिया ; लेकिन ज्ञान रुपी सुहागा नही डाला तो वह मैल वहीँ के वहीँ पिघला और बाद मे ठंडा हुआ तो वही के वहीँ जम गया ! पिघल तो जाएगा ! यदि ज्ञान रुपी सुहागा नही डाला तो ठंडा हो कर जम जाएगा ! सारी मेहनत व्यर्थ हो जायेगी संयम मे जाने की ! और ज्ञान रुपी सुहागा डाल दिया तो जीवन से मैल अलग हो जाएगा !
मुनि श्री 108 सुधासागर जी महाराज "दस धर्म सुधा " मे
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