अपने कर्तव्य को इश्वर ,भगवान ,अल्लाह पर मत छोडो ! सब ठीक हो जाएगा !विचार करते हैं तो पता लगता है कि सृष्टि के न भगवान कर्ता हैं न हर्ता हैं ,न उपभोक्ता हैं न विनाशक हैं ,हम अपने परिणामों मे जीते हैं और अपने परिणामों मे ही मरते हैं ! परिणामों से ही सुख व दुःख का अनुभव करते हैं अपने कर्मों का कर्ता दूसरा नही हो सकता ,अन्यथा स्वयं के कर्म निरर्थक हो जायेंगे ! यानि हम स्वयं ही हैं !कर्मों के निमित्त से ही जीव संसार मे परिणमन करता है !भगवान को कर्ता मत मानो !
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मीरा को क्या पता था कि ये मानव बाहर से प्रसाद कहते हैं और अंदर जहर घोल कर देते हैं ! पी गयी बेचारी ! प्रसाद मानकर पी गयी ,और मरी नही ......! मरी नही ? यह क्या हो गया ? राणा कहता है -मैंने तो बिलकुल जहर घोल कर दिया था फिर मीरा कैसे बच गई ? एक धर्म मार्गी है .एक कपट मार्गी है ! एक निश्छल आत्मा को दुनिया मे कोई ताकत नही मार सकती ! जहर दिया था ,मीरा पी गयी ,मरी नही -क्योंकि मीरा के पास आर्जव धर्म था ! सरलता थी और राणा के पास कपट था ! राणा देखता रहा और मीरा बच गई !
मुनि श्री 108 सुधासागर जी महाराज "दस धर्म सुधा " मे
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