करोड़ों वर्षों तक ज्ञान के बिना तु तपस्या करता रहा तो भी तेरे कर्मों की निर्जरा होने की कोई संभावना नही ! मुनि बन गया ,इसीलिए तेरे कर्म कट जायेंगें ,यह तेरी मायाचारी है ,अहंकार है ! पर्वत के ऊपर जाकर ग्रीष्म काल मे तप कर लेने से भी करोड़ों वर्षों तक कर्म कटने वाले नही हैं ! वृक्ष के नीचे चातुर्मास कर लेना ; तो भी कर्म नही कटेंगें ,शीतकाल मे नदियों के किनारे बैठ जाना ;तो भी कर्म नही कटेंगें ,जब तक तेरे अंदर भेद विज्ञान की किरण प्रवाह नही हो जाए !
मासोपवास करना , तन को सुखाना
आतप नही तपना ,बनवास जाना !
सिद्धांत का मनन , मौन सदा निभाना
यह व्यर्थ है ,साम्य के बिना श्रमण बाणा !
बाह्य रूप से नग्न वेष से क्या साध्य है ! अर्थात कुछ नही !भाव सहित द्रव्य लिंग के द्वारा ही कर्म प्रकृतियों का समूह नष्ट होता है !
नग्न होने मात्र से कल्याण हो जाए तो नग्न तो तुम जन्मे हो ,नग्न ही जाओगे भी ! नग्न तो न जाने कितनी बार नरकों मे थे , नरकों मे कोई वस्त्र नही मिले ,बिलकुल नग्न थे ! एक इन्द्रिय पर्याय मे रहे ,दो ,तीन चार और पंचेन्द्रिय पर्याय मे भी नग्न रहे !उस नग्नता मात्र से कल्याण होने वाला नही ! अंदर की नग्नता होगी ,तब व्यक्ति के अंदर ज्ञान प्रकट हो जाएगा !द्रव्यलिंग अनंतों बार भी ग्रहण कर लें तो कोई कल्याण होने वाला नही ! बाहिय भेष तो देहाश्रित है और जो देह से निर्ममत्व मार्ग है ,वह रत्नत्रय रुपी मोक्ष मार्ग है ! द्रव्य लिंग होना तो जरूरी है ,लेकिन द्रव्य लिंग के साथ जब भाव लिंग होगा ,तभी मोक्ष मार्ग होगा !
मुनि श्री 108 सुधासागर जी महाराज "दस धर्म सुधा " मे
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