आचार्य कहते हैं ,कर्मों से बच तो जाओगे ! हवा चल रही है ,धुल उड़ेगी तो शरीर पर चिपकेगी ! तो फिर संसार की धुल से कैसे बचें ? मुनिराज कैसे इस धुल मे रहते हुए भी इस धुल से बचे हुए हैं ? मुनियों ने राग द्वेष रुपी तेल लगाना छोड़ दिया है ,इसीलिए कर्म रुपी धुल उन्हें नही चिपकी ! इतना अंतर है ,तुम धुल को साफ़ भी करना चाह्ते हो और तेल भी लगाते रहते हो ! धुल को कितना भी साफ़ करो ,पुन: चिपक जायेगी ! तुम धुल से मत डरो ,तुम्हे धुल हटाने की भी आवश्यकता नही है ,तुम्हे बस ये नियम /संकल्प कर लेना है कि शरीर पर तेल नही लगाना ! धुल आएगी भी तो चिपकेगी नही ! थोडा सा फूंक लेना ,धुल आप ही उड़ जायेगी ! तुम कर्मों से बचना भी चाह्ते हो ,राग द्वेष रुपी तेल को भी नही छोड़ते हो ,कर्म रुपी धुल तो चिपकेगी ही ! यदि कर्मों से बचना है तो जो राग द्वेष रुपी तेल आत्मा के ऊपर हर समय लगाते रहते हो ,वह लगाना बंद कर दो यानि राग द्वेष करना बंद कर दो !
मुनि श्री 108 सुधासागर जी महाराज "दस धर्म सुधा " मे
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