सनत कुमार चक्रवर्ती का शरीर बहुत सुन्दर था ! देवताओं कि सभा मे चर्चा हो रही थी कि कुछ देवताओं ने सोचा इतना सुन्दर शरीर है उसका ,चलो एक बार अवलोकन कर आएं ! देवता धरती पर उतरे उसके रूप को देखने के लिए ! सनत्कुमार उस समय व्यायाम शाला मे व्यायाम कर रहे थे ! पसीने की बूंदें उनके मस्तक से टपक रही थी ! मिटटी भी शरीर पर लगी थी ! देवताओं ने कहा -धन्य भाग हमारे ,जैसा सुना था वैसा ही पाया आपका यह रूप अदिवित्य है ! सनत्कुमार ने कहा -अभी जब मै चोदह श्रृंगार कर के सभा मे आऊंगा तब देखना ! पुरुषों के चोदह श्रृंगार होते हैं ,महिलाओं के सोलह ,महिलाओं के एक बिंदी व नथ अधिक होती है ! देवता सभा मे उपस्थित हुए ! सनत्कुमार जैसे ही सिंहासन पर विराजमान हुए ,देवताओं ने कहा -राजन जो रूप आपका सुबह था वो अब नही रहा ! ऐसा कैसे ? आश्चर्य चकित हो सनत्कुमार ने पूछा ! राजन एक पानी से भरी थाली मंगाएं -देवता ने कहा ,मै आपको अभी वास्तविकता से परिचित कराता हूँ ! थाली मे पानी मे राजन को थूकने को कहा तो थूकते ही उसमे कीड़े चलने लगे ! राजन -इस शरीर के श्रृंगार मे आपने इतना मोह कर लिया कि कर्मों का बंध होकर एक अंतर्मुहुरत मे ही उदय मे आ गया ! तुम्हारे शरीर मे महादुर्गंध कुष्ट रोग निकल चूका है क्योंकि तुमने शरीर की सफाई से इतना मोह कर लिया !
जिनको सुन्दर काया चाहिये वे जो रूप मिला है ,उसे ही रहने दें !जैसा रूप तुम्हे मिला है वह कर्म की बदौलत ,शरीर को वैसा ही रहने दो !जो आज सुंदरता मिली है ,कोई बात नही कर्म के उदय से मिली है !चक्रवर्ती एक अंतर्मुहुरत मे ही कोढ़ी हो गया ! एक प्रशंसा की भठ्ठी मे किसी को डाल दो !फिर बस कहना ही क्या !मुनि श्री 108 सुधासागर जी महाराज "दस धर्म सुधा " मे
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