कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर जी ने अपने जीवन का एक संस्मरण लिखा है कि
उनके जीवन एक व्यक्ति से परिचय था ! उस व्यक्ति ने अपने बेटे की शादी मे बेटी
वालों को इतना परेशान किया कि देखने वाले जो सज्जन पुरुष थे ,उनको यह सब अच्छा नही
लगा और उन्होंने उसे कह भी दिया कि भाई ये तो ठीक नही है ,ये सब आपको शोभा नही
देता ! उनका जबाब था कि अरे तुम नही जानते गन्ने को निचोडो तब ही तो उसमे से रस
निकलता है !
दो तीन साल बीते ,उन्ही सज्जन जिनके बेटे का ब्याह हुआ था ,उन्ही की
बिटिया का ब्याह हुआ और बेटे वालों ने जो उनकी जो दुर्दशा की वो लोगों से देखी नही
गयी ! कुछ दिन बाद रास्ते मे मुहँ लटकाए वो फिर से मिल गए ! भैया, उदास क्यों हो ?
क्या बात हुई ? हफ्ते भर मे बेटी वापस आ जायेगी ! कहने लगे ,अब तो बेटी वालों को
कोई आदमी ही नही समझता ! हमने उनसे कहा तो नही पर एकदम से मन मे आ ही गया !ठीक तो
है ,आदमी क्यों समझेगा ! आप ने भी तो बेटी वालों को गन्ने की उपमा दी थी ! आपने भी
कहाँ उन्हें आदमी समझा था !
जैसा जैसा व्यह्व्हार हम दुसरे के साथ करते हैं वो हम तक वापस लौट कर
के वापस आ जाता है ! अगर हम खुद के लिए दुःख नही चाह्ते हैं तो फिर हमें दुसरे के
लिए भी दुःख का इंतजाम बंद कर देना चाहिये ! अगर अपने जीवन मे कोई संकट या विपत्ति
आती है तो उसके लिए भी दूसरों को दोषी ठहराना बंद कर देवें ! और एक बात कि दुसरे
के सुख मे दुखी होने की आदत छोड़ देवें और सिर्फ इतना ही विचार करें कि मैंने ही
कुछ ऐसा किया होगा कि जिससे मेरे जीवन मे यह संकट आया है ! अगर सही कर्म करने की
कुशलता सीख लें तो हमारा जीवन जरूर से बहुत ज्यादा अच्छा बनेगा !
अपने दुःख से दुखी लोग तो सँसार मे बहुत मिल जायेंगे ,दुसरे के दुःख
से दुखी कुछ ही मिलेंगे ! ऐसे लोग तो महान है जो दुसरे के दुःख को देख कर दुखी हैं
,अपने भीतर झाँक कर देखें हम ,कि कितने क्षण ऐसे होते हैं जब मै अपने ही किसी अभाव
की वजह से दुखी होता हूँ और कितने क्षण ऐसे होते हैं कि दुसरे के जिसमे मै दुसरे
के दुःख को देख कर दुखी महसूस किया हो अपने को , अधिकांश क्षण तो ऐसे होते हैं कि
दुसरे के सुख को देखकर ही दुखी होने मे ही गुजर जाते हैं !
मुनिश्री 108 क्षमा सागर जी की पुस्तक “कर्म कैसे करें” से
संपादित अंश
No comments:
Post a Comment