एक बहुत बड़ा कारीगर था ! जंजीरें बनाता था और उसकी बनायी जंजीर पर वह
आखिरी मे अपनी सील लगा देता था ! इस जंजीर को कोई नही तोड़ सकता और वाकई दूर दूर तक
इस बात की प्रसिद्धि थी कि उस की बनायी जंजीर को कोई नही तोड़ सकता और उसके भीतर भी
यह भाव बैठ गया और बहुत गहरे बैठ गया कि मेरी बनायी जंजीर को कोई नही तोड़ सकता !
एक दिन ऐसा हुआ कि किसी अपराध
मे उस कलाकार को क़ैद कर लिया गया और जंजीर पहना डी गई और जब जंजीर पहनाई जा रही थी
तो उसको कोई भय नही था ! बहुत खुश था क्योंकि
प्रसिद्धि उसकी इस बात की भी थी कि कोई भी जंजीर ऐसी नही है दुनिया की जिसे वह न तोड़ सके ,बस
उसकी बनायी हुई जंजीर को कोई नही तोड़ सकता ! लें दुनिया मे किसी की भी बनायी हुई
जंजीर को वो आसानी से तोड़ सकता है .इसीलिए वह मुस्कुरा रहा था ! जंजीरें बांधते
हुए कि एक झटका देना है ,क्योंकि अज तक कोई जंजीर ऐसी नही बनी जिसे मै न तोड़ सकूँ
,बस मेरी बनायी जंजीर को कोई नही तोड़ सकता !
एक साधु ने उसे वहाँ रास्ते मे गुजरते हुए देखा तो सोचा कि कोई पहुंचा
हुआ आदमी लगता है ,क्योंकि जंजीर मे जकड़े हुए होने के बाद भी चेहरे पर कोई मलिनता
नही थी ! प्रसन्नता का कोई कारण नही था तो जब वह भीतर कटघरे मे खड़ा हो गया तो बाहर
से साधु ने उस से कहा कि तुम्हारे मुस्कुराने का कारण क्या है ? तो उसने कहा कि
सुनो , कोई भी जंजीर हो ,बस इन्हें जरा हटने दो मै तोड़ दूँगा ! इसीलिए मै मुस्कुरा
रहा हूँ !
लेकिन यह क्या ? अगले ही क्षण वह सुबक सुबक कर रोने लगा –साधु ने पीछे
मुड़कर देखा और सोचा क्या हुआ ? अभी तो उसने कोई पुरुषार्थ भी नही किया कि जंजीर
तोडनी शुरू की हो और ना टूट रही हो ! आखिर रोने का कारण क्या है ? पूछने पर पता
चला कि अब तो मेरे सारे जीवन का अन्त इसी कारागार मे हो जाएगा ! मुझे यहीं पर मरने
को मजबूर होना पड़ेगा ! अरे आखिर बताओ तो सही कि कारण क्या है ? इस जंजीर पर मेरी
सील लगी हुई है ! इतना कह कर वह सुबक सुबक फिर से रोने लगा !
बधुओं सबकी बनायी जंजीर को वह तोड़ सकता है लेकिन अपनी बनायी जन्जीर को
नही तोड़ सकता !
लेकिन वास्तव मे तो मै खुद ही अपने बांधे हुए कर्मों की जंजीर तोड़
सकता हूँ ,मै ही अपने बांधे हुए कर्मो को काट सकता हूँ ! ये बात ये विशवास हमारे
भीतर होना चाहिये ! मै किसी और के या मेरी माँ भी मेरे बांधे हुए कर्मों को नही
काट सकती ,लेकिन मै अपने कर्मो को काट सकता हूँ !
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