मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

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Friday, 4 May 2012

मौत और जिंदगी


एक राजा था ! नाम था वज्रजंघ ! बड़ा शौकीन राजा था  ! उसके लिए प्रतिदिन एक माली सहस्त्रदल कमल लाकर दिया करता था ! एक दिन उसके हाथ मे जैसे ही एक कमल आया उसने देखा कि कमल के अंदर एक भौंरा मरा हुआ पड़ा है ! भौरें के मरण मे राजा को अपना मरण दिखाई दे गया ! उसने चिंतन किया ! हाय ,ये भौंरा जो काठ को भी छेदने मे सक्षम है वो इस कोमल कमल को नही छेड़ पाया ! रात मे पंखुड़ी सिकुड़ने से वह भीतर ही बंद होकर दम घुटकर मर गया ! कल मेरा भी मरण हो सकता है और राजा का मन विरक्त हो गया ,साधु बनना चाहा ,अपने पुत्र को बुलाया और राज्य का भार सौपना चाहा कि अब मै संन्यास अंगीकार कर के जीवन का कल्याण करना चाहता हूँ ,तुम इस राज्य का भरण पोषण स्वीकार करो ! पुत्रों ने पूछा –पिताजी ये आप इस राज्य को छोड़कर अचानक ही क्यों जाना चाह्ते हो तो पिता ने कहा कि ये राज्य असार है और मृत्यु कभी भी आ सकती है ,इसीलिए मै अपना कल्याण करना चाहता हूँ ,इसीलिए तुम लोगों से अनुमति चाहता हूँ और तुम इस राज्य के भार को स्वीकार कर लो ! पुत्रों ने कहा जब राज्य असार है तो असार राज्य हमें देकर क्यों जा रहे हो ? जब आप जा रहे हो तो हम भी आपके पीछे पीछे ही चलेंगें ! बेटे भी तैयार नही हुए ! अआखिर्कार पोत्र का राजतिलक कर के महल से निकले ! मृतु का बोध हुआ और जीवन का अभिनन्दन हुआ !
 सन्त कहते हैं : -
मौत  जब तक नजर नही आती
जिन्दगी राह पर नही आती

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