इस बात पर भी हमें विचार करना चाहिये कि हमारे कर्म भी हमारे वैयक्तिक
नही हैं ! वे सामजिक और राष्ट्रीय और आत्यंत व्यापक हैं ! जैसे हम सब लोग जानते
हैं कि अगर परिवार मे एक व्यक्ति धर्मात्मा है तो उस परिवार की विश्वसनीयता ,उस
परिवार के प्रति लोगों के मन मे प्रशंसा का भाव ,उस परिवार की प्रमाणिकता इन सब चीजों मे बढोतरी होती है ! आज मुझे किस चीज
का लाभ मिल रहा है ,आज मेरे साथ एक चीज जुडी हुई है कि मै आचार्य महाराज का शिष्य
हूँ ,उनकी तपस्या का फल हमें भी मिल रहा है ! जहाँ पर भी जाते हैं लोग वहाँ
श्रद्धा से देखते हैं ! अभी आपसे कोई बात नही की है ,लेकिन आचार्य जी के शिष्य हैं
ये काफी होता है मुझे जानने के लिए ! ये उदाहरण आपके सामने है !
एक मछली सारे तालाब को गन्दा करती है ,इसका भी उदहारण आप सबके सामने
है कि यदि दुर्योधन को थोड़ी सी भी राज्य की लोलुपता नही होती तो महाभारत का युद्ध
नही होता !
तीर्थंकर भगवन अपनी आत्मा का खुद कल्याण करते हैं ,तीर्थंकर की दिव्य
ध्वनि सुनकर ही चतुर्विध संघ (मुनि ,आर्यिका ,श्रावक ,श्राविका ) अपना कल्याण कर
लेते हैं ! हमारे किये हुए कर्म दुसरे के उत्थान और पतन दोनों मे जिम्मेवार हो
जाते हैं ! निमित्त बन जाते हैं !
माता पिता की धन संपत्ति जैसे बेटे को मिलती है ,उसी प्रकार माता पिता
का कर्ज भी बेटे को ही चुकाना पड़ता है !
सावधानी का काम है कर्म करना ! हमारे किये हुए कर्म सिर्फ हमारे ही
जीवन का उत्थान व पतन नही करते ,वे आस पास के परिवेश को भी प्रभावित नही करते हैं
!
मै जिन कर्मों का फल भोग रहा हूँ वो मैंने किन भावों से बांधें होंगे
! इन सबकी जिम्मेवारी मेरे अपने किये हुए पूर्व जन्म के कर्मों का किया हुआ परिणाम
है !
मुनिश्री 108 क्षमा सागर जी “कर्म कैसे करें” मे
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