एक बार एक राजा एक साधु के दर्शन को गया ! दर्शन करने के बाद वह साधु
के सामने बैठा तो उसने साधु से कहा – महाराज कभी कोई विपत्ति आए तो उसके लिए कोई
मन्त्र दे दीजिए ! उन्होंने कहा कि इस बात की चिन्ता ही क्यों करते हो कि विपत्ति
आएगी ! विपत्ति आएगी इस बात की चिन्ता ही सबसे बड़ी विपत्ति है ! आएगी ही क्यों ?
ऐसा सोचते ही क्यों हो ? राजा बोला –नही महाराज ,यह आपके सोचने की बात है ,आप
वर्तमान मे जीते हो ,वर्तमान को संभालते हो ! हम तो भविष्य की भी चिन्ता करते हैं
,बिगड जाएगा तो क्या करेंगें ? कभी विपत्ति आ गई तो बस उसके लिए आप कोई मन्त्र दे
दो ! साधु ने कहा –लो ये मन्त्र है और इस कागज को तभी खोलना जब कोई बहुत बड़ी विपत्ति
तुम पर आए,कुछ भी उपाय न सूझे और एक
मन्त्र लिख कर दे दिया !
कुछ दिनों के बाद उस राजा के राज्य पर पडोसी राजा ने आक्रमण कर दिया
और उसे लड़ाई मे हार का सामना करना पड़ा ! राजा को भागना पड़ा और पीछे दुश्मन राजा के
सिपाही लगे हुए थे और सामने रास्ता बंद था ! राजा ने सोचा कि इस समय से बड़ी कोई
विपत्ति नही होगी अब तो उस मन्त्र को खोल कर याद कर ही लेना चाहिये ! उसमे लिखा था
“यह वक्त भी गुजर जाएगा “ राजा के मन मे प्रसन्नता छा गई कि सच मे ये वक्त भी गुजर
जाएगा ! और हुआ भी ऐसा कि सिपाही आगे रास्ता बंद जान कर दूसरी ओर निकल गए !
राजा ने फिर से कुछ समय बीतते ही अपनी सेना को संगठित किया और वापस
पडोसी राजा पर आक्रमण कर दिया !और सहस और सैन्य बल से अपना राज्य वापस जीत लिया !
राजा जीतने का जश्न मना रहा था और राजगद्दी पर बैठा था ! तभी उसे वह बात याद आ गई
कि “ये वक्त भी गुजर जाएगा”
जो विपत्ति का क्षण था ,जैसे बीत गया , ये जो मेरे जीवन मे पूर्व जन्म
के किये हुए कर्मों की वजह से सुख का दिन आया है तो वो भी बीत जाएगा ! मै क्यों
इसमें इतना आनन्द मना रहा हूँ ,मुझे विषाद के समय पर ज्यादा दुखी होने की जरूरत
नही है और हर्ष के समय मे ज्यादा आनंदित होने की जरूरत नही है !
यदि यह सूत्र मै अपने जीवन मे याद रखूं तो मै अपने वर्तमान को आराम से
संभाल सकता हूँ ! हम तो यही सोचते हैं कि हमारे कर्म उदय मे आयेगें तो उनका फल भी
हमें भोगना ही पड़ेगा ! यह मेरे अपने पुरुषार्थ पर निर्भर है ,बस इतनी सी बात याद
रखनी है मुझे !
साता के उदय मे कौन अपना क्या पुरुषार्थ करता है ,इस पर निर्भर करता
है उसके आने वाले जीवन का लेखा जोखा ! सारा व्यक्तित्व इस पर निर्भर करता है !
अंश संपादित करके लिए गए हैं!
मुनिश्री क्षमा सागर जी की पुस्तक “कर्म कैसे
करें” से
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