मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

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Sunday, 13 May 2012

कर्मों के जीतने के तीन उपाय


कर्मों के जीतने के तीन उपाय हैं ! पहला तो यह है कि बाह्य वातावरण से जितनी जलसी हो सामंजस्य बना लेना चाहिये ! कर्मों के उदय मे यह स्थिति गड़बड़ा जाती है ! सामंजस्य नही रह पाता ! या तो बहुत हर्षित हो जाते हैं या कि विषाद कर लेते हैं ! दोनों ही चीजें हो जाती हैं ,दोनों ही सामंजस्य नही हैं ! सदभाव और अभाव दोनों ही स्थिति मे सामंजस्य बना कर रखना !
दूसरी चीज है ,प्रतिक्रिया न करें ,ऐसी कोशिश करें ! करनी पड़े तो कम से कम प्रतिक्रिया करें और यदि प्रतिक्रिया करें भी तो बहुत सकारात्मक करें ,बहुत रचनात्मक करें ! नकारात्मक नही ! या तो प्रतिक्रिया न करें होती भी है तो अल्प करें !
तीसरी चीज है ,सँसार के घात प्रतिघात से बचने का प्रयत्न करें !
कौन है ऐसा जिसे अपने किये हुए कर्मों का फल न भोगना पड़ा हो ! कोई कर्मों के फल को रोकर भोगता है ,कोई हंसकर भोगता है ! कोई शांति से भोगता है और कोई घबराहट से भोगता है ,इतना ही है !ऐसे कितना ही उदाहरण भरे पड़े हैं इतिहास मे ! रामचन्द्र जी को चोदह वर्ष जंगलों मे भटकना पड़ा था ! तीर्थंकर आदिनाथ को भी एक छ: माह तक भोजन के लिए भटकना पड़ा था !  अन्तराय कर्म का उदय रहा लेकिन उन्होंने उस अन्तराय को कैसे भोगा , ये देखने की बात है  तीर्थंकर पार्श्वनाथ को भी अपने शरीर पर पत्थर तक झेलने पड़े थे ! लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि उन्होंने कर्मों के फल को कैसे भोगा ....समता भाव से भोगा ,शांति से जिया ,ये कला हमें भी सीखनी होगी! तभी हमारा जीवन सार्थक होगा !
     

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