जिन कर्मो का फल मई आज भोग रहा हूँ वो मैंने किन भावों से बांधें
होंगे ! अगर आज मेरी अज्ञानता ज्यादा है ,मेरा ज्ञान ढक गया है ,मेरे अपने जीवन मे
बहुत सारी गडबडियां हैं ,उन सबकी जिम्मेवारी मेरी है और मेरे पूर्व मे किये हुए
कर्म हैं ,ये सब उन्ही का परिणाम है ! कर्मों का फल हमें दोनों ही रूपों मे आसक्त
करता है ! जब वो भला फल देता है तब हमें गाफिल कर देता है ! हमारे भीतर अहंकार
पैदा कर देता है और जब वो अपना खोटा फल देता है तब वो हमें संक्लेषित कर देता है
और अहंकार और संक्लेश इन दोनों ही प्रक्रियाओं मे मै और अधिक अपने सँसार को बढाता
हूँ इसीलिए पहली चीज मै कर्म के फल मे अपनी आसक्ति घटाऊ और जो कर्म मै करता हूँ
उसको कर्तव्य मानकर करूँ और कर्ता बनकर न करूँ ! अगर ये दोनों चीजें हमारे जीवन मे
आ जाएँ कि कर्म का फल भोगते समय क्या सावधानी रखनी है ,फिर देखिएगा कि कर्म जीवन को
ऊँचा उठाने वाले ही होंगे !
असल मे हम सब कर्म करने मे उतने उत्सुक नही हैं ,हम तो कर्म के फल मे
उत्सुक हैं ,देखा जाए तो और कई बार ऐसा लगता है कि फल मिल जाए ,हमें कर्म न करना
पड़े ! ये जो लाटरी वगैरा की प्रक्रिया है जैसे कि
कुछ भी न करना पड़े और पैसा हाथ लग जाए ! गांधीजी ने कहा था “Wealth
without work is a sin and Knowledge without morality is a sin”. बगैर काम किये पैसा
! नैतिक मूल्य कुछ भी नही हैं और ज्ञान बहुत सारा है तो वो पाप मे ही ले जाएगा
आपको ,जैसे की ले जा रहा है आज ! आध्यात्मिक विकास की कोई चिन्ता नही और ज्ञान तो
अपार ,वो कहाँ ले जाएगा ? पतन की तरफ ले जाएगा !
एक तो वह लोग हैं जो कर्म तभी करते हैं जब यह तय हो जाए कि फल क्या मिलेगा
! वे फल मे ज्यादा रूचि रखते हैं ,कर्म मे नही रखते ! दूसरी ओर ऐसे लोग हैं जो ये
कहते हैं कि मै तो अपना कर्म करूँगा ,मेरा कर्तव्य है और जब मै अपना कर्तव्य बखूबी
करूँगा तो उसका फल तो मिलेगा ही ! मुझे उस फल को लेकर चिंतित होने की कोई आवश्यकता
नही ! भले कर्म का फल भला मिलता है ,बुरे कर्म का बुरा ! और तीसरे ऐसे लोग हैं जो
थोड़े और निश्चिन्त हैं ,वे तो ये कहते हैं कि मै तो कर्म करता हूँ ,फल को भगवान पर
छोड़ता हूँ
मुनिश्री क्षमा सागर जी की पुस्तक “कर्म कैसे करें” से संपादित अंश !
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