मेरा अपना इसमें कुछ भी नहीं .........

जो भी कुछ यहाँ लिखा है जिनेन्द्र देव और जैन तीर्थंकरों की वाणी है !

जैन साधुओं व साध्वियों के प्रवचन हैं !!

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Tuesday, 15 May 2012

कर्मों का परिणाम


मित्रों जय जिनेन्द्र नमस्कार प्रणाम
एक बात जो पहले भी आप सब से कहता रहा हूँ कि मेरा अपना कुछ भी नही है जो भी मै यहाँ लिखता हूँ वो सब आचार्यों ,मुनियों व साधु जनों की वाणी है ! कभी कभी जब नाम नही लिखता हूँ तो उसका कारण ये होता है कि विषय को छोटा करने के लिए अपने शब्दों मे पिरो देता हूँ ,और साधु के शब्दों मे और मेरे कहे हुए शब्दों मे बहुत अन्तर होता है इसीलिए उनका नाम नही लिखता हूँ ! 

किन्ही मुनिराज के जीवन की घटना है ,हुआ ऐसा कि उनका ज्ञान का क्षयोपशम इतना बढ़ गया कि अपने गुरु से भी अधिक हो गया (बुद्धि जरूर अत्यंत तीक्षण रही होगी) अब उनको इस बात मे इतनी शर्म आने लगी ,लोग पूछते थे कि मुनिराज आपका ज्ञान इतना उत्कृष्ट कैसे ? तो उनको इस बात मे झिझक होने लगी कि कहें कि इन  गुरूजी से सीखा ! उन्हें तो बिलकुल ही ज्ञान नही है ! उनका नाम बताकर हमें क्या मिलने वाला है ? नही मैंने अपने आप ,अपने पुरुषार्थ से इस ज्ञान को अर्जित किया है!ऐसा अहंकार उसके जीवन मे आ गया और उसने अपने गुरु का नाम छिपा लिया और गुरु के प्रति अविनय का भाव आ गया ! इसका परिणाम उनके जीवन मे ही देखने मे आ गया कि इतना कुंदन सा शरीर था ,धीरे धीरे पूरा शरीर काला होता चला गया ! थोड़ी सी असावधानी हो गई इसीलिए ऐसी स्थिति बनती चली गई लेकिन जैसे ही उनके शरीर मे परिवर्तन हुआ उनका ध्यान इस ओर चला गया और उनको अपनी गलती का अहसास हुआ ! कहते है कि पश्चाताप किया ,गुरु चरणों मे जाकर माफ़ी मांगी और कहते हैं कि कुछ ही दिनों मे उनका शरीर ज्यों का त्यों हो गया !
अपने किये हुए कर्मों का परिणाम तुरंत भी मिलता है और दूरगामी परिणाम भी होता है ,बहुत सावधानी की आवश्यकता है ! हम ने ज्ञान हासिल किया है तो जिस पुस्तक से किया है ,जिन गुरुवर के चरणों मे बैठकर हासिल किया है उनके प्रति आदर और कृतज्ञता ज्ञापित जरूर करें ! लेकिन उन क्षणों मे हमारा अहंकार हमें शांत नही बैठने देता !

मुनिश्री 108 क्षमा सागर जी “कर्म कैसे करें” मे  

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