सांझ ढलने को होती है तो हम लोग पहले ही रोशनी का इंतजाम कर लेते हैं
किसिलिये ? क्योंकि अँधेरा होने का भय है ! ये भय ही हमें अँधेरे से सावधान रखता
है ! अँधेरे मे रहते हुए भी आप अन्धकार से बच सकें तो उसके लिए दिया बाती का
इंतजाम करना आवश्यक है !
संत कहते हैं क्या पता कब तुम्हारे जीवन का ये सूरज ढल जाए और अँधेरा
छाए ,इससे पहले कि अँधेरा हो जाए दिया जला लो ताकि फिर तुम्हे कभी अँधेरे का सामना
न करना पड़े ! कभी भी तुम्हारा अन्त हो सकता है एक दिन मरोगे और मरने के बाद क्या
होता है ? संत कहते हैं कि अर्थी तो उठनी ही है इससे पहले जीवन का अर्थ समझ लो !
चिता तो जलनी ही है इससे पहले चिता जले अपनी चेतना को जगा लो ! फिर तुम्हे कहीं
उलझना नही पड़ेगा ! फिर तुम्हे व्याकुल नही होना पड़ेगा !
हामारे यहाँ एक बहुत अच्छे चिन्तक व विचारक हुए हैं श्रीमद राजचंद्र
जी ! गांधीजी उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे ! वे सदैव कहा करते थे कि तीन
बातों का ध्यान रखो ! काल सिर पर सवार है ! पाँव रखते ही पाप लगता है और नजर खोलते
ही जहर चढ़ता है ! यानि मौत कभी भी हमला कर सकती है ,पाँव रखते ही पाप लगता है यानि
सँसार मे रखे जाने वाला एक एक कदम
पापपूर्ण होता है सिसिलिये सावधान होकर चलो ! नजर खोलते ही जहर चढ़ता है यानि तुमने
विषयों की तरफ देखा नही कि उसका जहर चढा नही ! विषयों का जहर रात दिन चढ रहा है
इसीलिए इस जहर से अपने आप को बचाओ !
अपनी दृष्टि को ज्ञान संपन्न बनाएँ ,भेद विज्ञान से पुष्ट कीजिये !
शरीर की नश्वरता और आत्मा की वास्तविकता को जानिये और वैराग्य को अंगीकार करके
सँसार मे रहिये पर सँसार मे प्रवृत्त मत होइए !
मुनिश्री प्रमाण सागर जी की पुस्तक “मर्म जीवन का” से संपादित
अंश
No comments:
Post a Comment