एक बार बापू गांधी एक मीटिंग मे इलाहाबाद गए और जब सुबह सुबह मुहँ
धोने के लिए सरोजिनी नायडू ने एक लौटा भरकर के उन्हें दिया ,नेहरु जी भी बाजू मे
ही थे ,मुहँ भी ढो रहे थे और कांग्रेस की चर्चा चल पड़ी ,तो कब लौटा खाली हो गया
,उन्हें ध्यान ही नही रहा और मुहँ तो पूरा धुल नही पाया ,तो बड़े दुखी हुए बापू !
नायडू ने कहा –इतने चिंतित क्यों हो ,एक लौटा और ले लीजिए ,पानी का भरा हुआ !
नेहरु जी ने भी कहा कि भूल जाइए कि आप आश्रम मे हैं ,आप तो यहाँ इस समय प्रयाग मे
हैं ! यहाँ संगम पर बेठे हुए हैं ,यहाँ पानी कि क्या कमी है ? तो उन्होंने कहा –चीजों
का सदभाव मुझे मेरे कर्तव्य से अगर विचलित कर दे तो इससे अच्छा है कि वो चीजें न होती तो ज्यादा अच्छा
था !
आज मेरे पास ज्यादा पानी है तो इसका मतलब यह नही है कि मै उसका
दुरूपयोग करूँ ! मै ऐसा कर्म करूँ जिससे कि मै अपने कर्तव्य से विचलित न हो जाऊं
उसके सदभाव मे ! कल के दिन उन चीजों के सदभाव के लिए मुझे फिर मेरे कर्तव्य से
विचलित करेगा ! मुझे एक बार अगर चीजों के सदभाव मे उनका सदुपयोग करने की आदत नही
रहेंगी तो उनके अभाव मे .मै व्यथित होकर के कैसे उनका सदभाव हो उसके लिए मिथ्या
मार्ग को अपनाऊंगा ! तब मेरा पूरा वर्तमान नष्ट हो जाएगा ,और मै संभालना चाहता हूँ
अपने वर्तमान को तो मुझे अभाव और सदभाव दोनों मे अपने स्वधर्म को ,अपने कर्तव्य को
नही भूलना चाहिये !
ये चीजें जो हैं आश्रम मे ,एक दातुन आई है ,अगर दातुन का ऊपर का सिरा दांतों
को घिसने से उपयोग मे आ गया है तो वो कहा करते थे कि जितना काम मे आ गया है उतना
अलग कर दो ,बाकी फैंकने की आवश्यकता नही है ,उतना बचा लो ,कल फिर उसी से घिसने के
काम आएगी !
आज के सामान्य जन जीवन मे अगर हम इन
छोटी छोटी बातों को अपने जीवन मे उतार लें तो हमारा जीवन कितना सुखी हो सकता
है ! इसे ही जैन दर्शन मे तीर्थंकरों की
वाणी मे परिग्रह परिमाण का नाम दिया है कि हम अपने जीवन मे छोटे छोटे संकल्प करें
तो जन जीवन कितना सुखी हो सकता है !
अपने जीवन का निर्माता मै स्वयं हूँ उत्तरदायी मै स्वयं हूँ ! अपने
जीवन को मै जितना पवित्र करता हूँ , उसका उत्तरदायित्व भी मेरा है और जितना मै ऊपर
उठाता हूँ उसकी जिम्मेवारी भी मेरी है ! ठीक है किसी का अतीत खराब हो सकता है
,लेकिन ऐसा कोई जरूरी नही है कि जिसका अतीत खराब हो उसका भविष्य भी खराब होगा
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