जैन दर्शन और शब्द
एक स्कंध (वस्तु) के दुसरे स्कंध के साथ टकराने या किसी स्कंध के
टूटने से उत्पन्न ध्वनि रूप परिणाम को शब्द कहते हैं !जैन दर्शन मे शब्द को पुद्गल
(matter)की पर्याय कहा गया है !
शब्द दो प्रकार के होते हैं –भाषात्मक व अभाषात्मक ! इन्हें
अक्षरात्मक व अनअक्षरात्मक भी कहा जा सकता है !
संस्कृत ,हिन्दी आदि भाषाएँ अक्षरात्मक शब्द हैं ! दो इन्द्रिय से
लेकर पांच इन्द्रिय पशु पक्षियों की आवाज (ध्वनि) अनअक्षरात्मक कहलाती हैं !
अभाषात्मक या अनअक्षरात्मक शब्द भी दो प्रकार के होते हैं !
प्रायोगिक :-
तत- तबला ,मृदंग ,भेरी आदि मे चमड़े के तनाव के कारण कारण उत्पन्न शब्द
वितत – तार के तनाव के कारण वीणा , सितार आदि से उत्पन्न शब्द
घन –घंटा ,घड़ियाल आदि के टकराव से उत्पन्न शब्द
शोषिर –शंख ,बांसुरी आदि से निकलने वाले शब्द
नैसर्गिक :-
मेघ की गर्जना ,भूडोल भूकंप ,वायु ,वर्षा और वृक्षों की रगड से
उत्पन्न शब्द क्योंकि यह प्रयत्न के बिना ही स्वभाव से उत्पन्न होता है !
मुनिश्री 108 प्रमाण सागर जी “जैन धर्म व दर्शन” मे
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