गाँधीजी के जीवन की एक घटना है ! जब वो जेल मे थे ! सत्याग्रह का अवसर
था तब उनको जेल हुई थी ,उस जेल मे उनके
साथ एक अफरिकेन नीग्रो भी था ! पता नही कोई पुराना संचित कर्म होगा ,जिससे कि उस
नीग्रो के मन मे गांधीजी के प्रति जरा भी प्रेम भाव नही था ,उल्टा द्वेष भाव था !
लेकिन गांधीजी कभी उसके प्रति द्वेष भाव नही रखते थे ,प्रेम ही था ! उसके प्रति भी
दया व करुणा का भाव ही था ! एक दिन ऐसा हुआ कि वैसे तो वह हर काम मे गांधीजी को
तकलीफ ही देता था ,कहीं लौटा छुपा देता ,कहीं और दुसरे उपद्रव करता ,पर उस दिन गांधीजी को मालूम पड़ा वह दिखाई ही नही दे
रहा है ,क्या उसकी छुटटी हो गई ? क्या वो जेल से चला गया ? पूछने पर पता चला कि वो जेल मे ही है उसे तो बहुत लंबी
सजा है ! फिर गया तो कहाँ गया ? गांधीजी उसे ढूंढ रहे हैं ,जो हर पल उसके साथ
दुर्व्यवहार करता है ,दया तो ऐसी ही चीज है ,अपने साथ भला करने वाले के प्रति तो
सब के मन मे ही दया सम्भव है ,लेकिन अपने से दुर्व्यवहार करने वाले के प्रति दया ?
अब क्या हुआ कि ढूंढते ढूंढते वो मिल गया ! वो तो बीमार था ! उसको बहुत तेज बुखार
था ! गांधीजी अब पट्टी रख रहे उसके माथे पर ! ठंडी पट्टी ! उसका इलाज कर रहे हैं
,सारा दिन व्यतीत हो गया ,सारी रात काट गई ,आँख नही लगी और जब सुबह सुबह उसकी आँख
खुली तो वो दंग रह गया कि ये तो वही हैं जिन्हें मै इतने दिन से तकलीफ देता आया
हूँ ,तंग करता आया हूँ ! क्या ये सारी रात मेरी सेवा करते रहे ? देखते ही उसके
परिणाम बदल गये ! कल तक जो दुःख मे निमित्त बना रहा वही आज एक एक बात का ध्यान
रखने लगा कि गांधीजी को कोई कष्ट न हो जाए और जब गांधीजी का सत्याग्रह का वो जेल
का समय पूरा हो गया ,बाहर निकलते समय उसने कहा कि एक ही प्रार्थना करता हूँ कि
थोड़ी दूर भेजने के लिए मुझे अपने साथ ले चलो जेल वालों से कहकर ! गांधीजी के कहने
पर वो गांधीजी के साथ मे आया !जब लौटने लगा ,इमानदारी से लौटेगा ! भाग भी सकता था
,लेकिन अब हृदय परिवर्तन हो चूका था ! लौटने लगा तो गांधीजी ने अपनी घडी उसको दे
दी ! कहते हैं वो घडी उसने अंतिम क्षण तक साथ रखी !
ऐसा विचार आना चाहिए जब जब मै किसी दुसरे के दुःख मे निमित्त नही बनता
हूँ और यथासंभव उसके सुख मे निमित्त बनता हूँ ,तो वास्तव मे मै अपने सुख का ही
इंतजाम करता हूँ !
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