संत कहते हैं अपने को बेहतर साबित करने से कोई लाभ नही ,बेहतर बनने की
कोशिश करो ! लेकिन आजकल दुनिया के लोगों की मनोवृत्ति बड़ी विचित्र हो गई है ,वे
दूसरों के सामने अपने को बड़ा मधुर व विनम्र दिखाते हैं ,लेकिन अंदर क्या है उसको
तो वही व्यक्ति जानता है ,जिसके वह क्रिया हो रही होती है ! एक दंपत्ति थे ,उन्हें
जानकारी मिली कि एक चमत्कारिक कुआँ है ,जिसके बारे मे ऐसी मान्यता है कि कुँए मे
जाकर झाँकने से जो भी चाहो वो मिल जाएगा ! दोनों पहुँचें ,सबसे पहले पति ने कुँए
मे झाँका और कुछ मनोकामना की ! बाहर आकर वापस खड़ा हुआ ,अब पत्नी की बारी थी !
पत्नी कुँए मे झांकी ,कुछ ज्यादा ही झुक गई और कुँए मे नीचे गिर पड़ी ! पत्नी को
नीचे गिरते देख पति ने कहा –हे भगवान ये थोडा ही मालूम था कि मनोकामना इतनी जल्दी
पूरी होती है !
यह व्यावहरिक सोच है लोगों की स्थिति ऐसी होती है कि ऊपर से तो वह
बहुत अच्छे बने रहते हैं और भीतर ही भीतर कुछ और घटित होता रहता है ! यह सोच ही
अच्छी सोच नही है ! व्यवहारिक बनिये ,लेकिन मतलबी नही ! व्यवहार मे विनम्रता रखिये
,लेकिन फिर भी अपने सिद्धान्तों पर दृढ
रहिये ,सिद्धान्त को कतई मत खोइये ! तब आप जीवन मे कुछ अर्जित कर सकेंगें ! यह व्यवहारिक सोच है !
सबसे अच्छी सोच आध्यात्मिक सोच है ! आध्यात्मिक सोच से भरा व्यक्ति
,बुराई मे भी अच्छाई ढूंढ लेता है उसके चिंतन की धारा कुछ अलग होती है ,वह सदैव
दूसरों पर दोषारोपण करने की जगह खुद को उनमे स्थापित करके देखता है ! आध्यात्मिक
सोच के बल पर अनेक व्यक्ति महापुरुष कहलाए हैं ! श्रीराम को सब पूजते हैं ,सबके
जीवन के आदर्श हैं ,रावण को कोई नही पूछता ! क्योंकि राम के जीवन मे मर्यादा थी
,लेकिन रावण की सोच भौतिक थी
आप अपने जीवन को सुखी रखना चाह्ते हो तो आध्यात्मिक नजरिये से जीने की
कोशिश कीजिये ,यदि आपके जीवन मे आध्यात्मिकता आ गयी तो आप दुःख मे भी सुख पा जाओगे
!
मुनिश्री 108 प्रमाण सागर जी “लक्ष्य जीवन का” मे
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